लंबा समय बीत चुका है कि अपने हक के लिए आज भी कोल इंडिया पेंशनर्स एसोसिएशन गुहार लगा रहा है लेकिन सरकार का यह तानाशाही रवैया बरकरार है। आज तक इसपर न तो कोई कार्यवाही की गई और न ही किसी ने इसे चर्चा करने हेतु जरूरी समझा। संगठन द्वारा संसद से लेकर प्रधानमंत्री तक बार-बार, लगातार पत्राचार किया गया लेकिन हमेशा की ही तरह फ़ाइलें इस कार्यालय से उस कार्यालय ही घूम रही है। एक चीज देने में सरकार कभी पीछे नही छूटती वो है आश्वासन, जी हाँ सरकार द्वारा इन संगठनों को कई वर्षों से मात्र आश्वासन दिया जा रहा है।
अब इन्ही लंबी अर्जियों से थक हार कर कोल इंडिया एसोसिएशन द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दिनांक 21.01.2015 को याचिका यानि के पिटिशन दायर की गई जिसपर 27.02.2015 को याचिका पर सुनवाई हुई लेकिन इस याचिका को दिल्ली न्यायालय में सुनवाई हेतु भेज दिया गया, और तब से लेकर आज तक पेशियाँ दी जा रही है। इसकी वजह भी साफ है की वकीलों एवं नियोजकों द्वारा षड्यन्त्र पूर्वक लेट लतीफी। जी हाँ, आप सुनकर खुद आश्चर्यचकित और साथ ही साथ उदासीन हो जायेंगे की अपने हक की गुहार लगाते-लगाते 90 फीसदी सेवानिवृत सदस्य स्वर्गवासी हो गए हैं लेकिन फिर भी भारत सरकार चुप्पी साधे हुए है। उनके द्वारा इसके चलते कोई निर्णय, कोई समाधान नही किया गया।
संविधान की धारा 21 में जीवन यापन का यह मौलिक अधिकार है जिसमे पेंशन को डिफर्ड वेज कहा गया है और धारा 300 अ के अनुसार इसे प्राप्त करना पेंशनर का हक है। जैसा कि कोल माइन्स पेंशन स्कीम 1998 में धारा 22 में निहित है की हर 3 वर्ष में पेंशन रिवाइज होगा, किंतु कोई कार्यवाही न कर संवैधानिक अधिकार का हनन किया जा रहा है। इसीके चलते कोल माइन्स पेन्शनरों द्वारा महामहिम राष्ट्रपति महोदय भारत सरकार को संबोधित ज्ञापन में मांग की गई कि हस्तक्षेप करते हुए कोल इंडिया पेंशनर्स एसोसिएशन की मांगों पर शीघ्र कार्यवाही की जाए।
कोल इंडिया पेंशनर्स एसोसिएशन सोहागपुर क्षेत्र ने बैठक में केंद्र सरकार के विरुद्ध निन्दा प्रस्ताव पेश कर धिक्कार दिवस भी मनाया। विषय बहुत संगीन है जिसमे प्रशासन सुस्त नज़र आ रही है, अब बहुत लंबा समय बीत चुका है और सरकार अपने सुस्त रवेये से बाज नही आ रही। उम्मीद यही होगी की लोगों को उनका हक जरूर प्राप्त हो।