हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत की प्रगति पर विशेष योगदान दिए हैं।
उनका जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। जब वह देश के पीएम बने तो उन्होंने कई अहम महत्वपूर्ण कार्य किए जो आज भी यादगार हैं।
उन्होंने अपने पड़ोसी देशों को खास तवज्जो देते हुए, रणनीति बनाई थी।
उनका मानना था कि ‘मित्र बदले जा सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं’ इस नजरिए से उन्होंने लाहौर बस यात्रा की नीव रखी थी।
अटल बिहारी वाजपेयी ने फरवरी 1999 में पाकिस्तान की यात्रा की थी, जब वह बस में बैठकर वाघा बॉर्डर पार कर लाहौर पहुंचे थे।
उनके साथ 20-25 लोग थे, इनमें हिन्दी सिनेमा जगत के कई दिग्गज कलाकार देवानंद, गीतकार जावेद अख्तर के साथ-साथ क्रिकेट जगत के दिग्गज खिलाड़ी कपिल देव भी शामिल थे।
20 फरवरी, 1999 का दिन था, जब दोपहर करीब चार बजे भारतीय सीमा को छोड़कर बस पाकिस्तान की सरहद पार कर पहुंची थी।
भारत और पाकिस्तान के बीच की यह बस यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक थी।
इससे एक वर्ष पहले 1998 में दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किया था।
जिससे दोनों के बीच तनाव चरम पर था। देश की सीमा पर दोनों सेनाओं में टकराहट की भी स्थिति थी।
इसके बावजूद अटल ने लाहौर यात्रा की योजना बनाई।
इस यात्रा को लेकर दोनों मुल्कों में अमन और शांति का संदेश गया।
अटल की इस पहल को दुनियाभर के बड़े राजनेताओं ने सरहाना की।
उनका स्वागत करने के लिए खुद पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ सामने आए थे।
पाकिस्तान के पूर्व मंत्री मुशाहिद हुसैन सैय्यद उन दिनों को याद कर कहते हैं “वाजपेयी की उनके मन में एक छवि थी।
एक तो वो भारत के वजीरे आजम थे। वो भारत जो पाकिस्तान का विरोधी है।
दूसरा वो भारतीय जनता पार्टी से थे, जो हिंदुत्व की पार्टी है। मगर मैंने देखा कि वाजपेयी एक खुले दिल और दिमाग वाले इंसान हैं।
बल्कि वह कहेंगे कि वे हिंदुस्तान के सबसे बड़े स्टेट्समैन थे’ हुसैन के अनुसार अटल का विजन अमरीका के रिचर्ड निक्सन जैसा लगा, जिन्होंने दक्षिणपंथी रिपब्लिकन होते हुए भी कम्युनिस्ट चीन के साथ संबंध बढ़ाए।
उनकी ‘आउट ऑफ़ बॉक्स’ सोच थी। उनकी विनम्रता से बहुत प्रभावित हुआ। आवाज धीमी लेकिन मजबूत नेता और क्लियर विज़न’ वाले व्यक्ति हैं।
संघर्ष विराम की घोषणा
कारगिल युद्ध के बाद उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ को साल 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन का निमंत्रण दिया।
परवेज को कारगिल घुसपैठ का जिम्मेदार ठहराया जाता है। हालांकि यह शिखर वार्ता बेनतीजा रही, लेकिन वाजपेयी ने संबंध सुधार की अपनी कोशिशों को बिल्कुल नहीं छोड़ा।
2003 में उनके शासनकाल में ही नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष विराम की घोषणा हो गई थी।
2004 में जब भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान के दौरे पर जाने वाली थी, तब उन्होंने खिलाड़ियों को ये नसीहत देते हुए रवाना किया कि ‘खेल भी जीतिये, दिल भी जीतिये’
‘मित्र बदले जा सकते हैं, पड़ोसी नहीं’
वाजपेयी के उस दौरे को आज भी पाकिस्तानी याद किया करते हैं। अटल उस जगह भी गए, जहां मोहम्मद अली जिन्ना ने 1940 में पाकिस्तान की नींव रखी थी।
यह जगह मीनार-ए-पाकिस्तान है, जो पाकिस्तान में एक स्मारक की तरह है। यह एक अहम फैसला था, जो भारत में भी कई लोगों को पंसद नहीं आया था।
उन्होंने यह कहकर आपत्ति जताई थी कि यह पाकिस्तान के गठन पर मुहर लगाने जैसा होगा। इस पर वाजयेपी ने जमीनी हकीकत को स्वीकार करने का सुझाव दिया था।
वे कहा करते थे, ‘मित्र बदले जा सकते हैं, पर पड़ोसी नहीं’ अपनी इसी सोच के तहत उन्होंने सभी विरोध, विसंगतियों, आशंकाओं, अंतरराष्ट्रीय सीमा व नियंत्रण रेखा (LoC) पर तनाव, कश्मीर में तनाव के बावजूद लाहौर यात्रा का निर्णय लिया था।

19 फ़रवरी को अमृतसर से रवाना होकर 40 मिनट में बस लाहौर पहुंच गई।
कहे के अनुसार नवाज़ शरीफ़ खुद वाजपेयी को रिसीव करने पहुंचे।
इस यात्रा के दौरान प्रधानमन्त्री वाजपेयी मीनार-ए-पाकिस्तान, अल्लामा इकबाल की मजार, गुरूद्वारा डेरा साहिब और महाराज रणजीत सिंह की समाधि पर गये।
वाजपेयी के मीनार-ए-पाकिस्तान पर जाने का भारत में बहुत विरोध भी हुआ।
चूंकि यहीं पर 1940 में इसी जगह ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अधिवेशन के दौरान फजहुल हक ने मुहम्मद अली जिन्ना की उपस्थिति में ‘पाकिस्तान’ का प्रस्ताव पेश किया था।
इस मीटिंग का एक महतवपूर्ण एजेंडा था CBM यानी कॉन्फ़िडेन्स बिल्डिंग मीजर्स।
इस तरह के मसौदे 1990 से ही तय होते आ रहे थे। लेकिन अब बात दो न्यूक्लियर पावर्ड देशों के बीच होनी थी।
यात्रा से पहले ही भारत की तरफ़ से पेपर तैयार कर पाकिस्तान के साथ साझा किया गया।
फरवरी के पहले हफ़्ते में राकेश सूद और विवेक काटजू लाहौर गए और वहां अपने पकिस्तानी काउंटर पार्ट्स से मिले।
दोनों देशों के बीच यही दस्तावेज वो MOU बना जो आज ही के दिन यानी 21 फरवरी 1990 को दोनों देशों के फ़ॉरेन सेक्रेटरी ने साइन किया।
के. रघुनाथ तब भारत के फ़ॉरेन सेक्रेटरी थे और शमशाद अहमद पाकिस्तान के थे।