कल्पना करिए, आजादी से पहले की भारत जहाँ हम अपने ही देश में अंग्रजो के इशारे पर नाचने को मजबूर थे,कानून भी उनका, शासन उनका, फैसला भी उनका।
उस वक्त सोचने पर लोगों को कैसा लगता होगा कि हम खुद वोट देकर अपने नेता चुन सकेगे। यह सपना सच हुआ आजादी से चार साल बाद जब भारत में पहली बार आम चुनाव का आयोजन सपन्न हुआ।
25 अक्टूबर 1951 को हिमाचल प्रदेश में चुनाव का पहला वोट श्याम सरन नेगी के द्वारा डाला गया था।उस समय हिमाचल प्रदेश में काफी ठंड पड़ रही थी इसलिए सबसे पहले यहाँ पर चुनाव कराया गया।आपको बता दें कि बूथ पर मतदान सामाग्रियों को खच्चर पर ले गया था।
हम सभी जानते हैं कि भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को ही मिल गई थी।और 26 जनवरी 1950 को भारत लोकतंत्र बना था।
उस समय पूरी दुनिया की नजर हम थी, सबको लगता था कि अंग्रेजों से आजादी के बाद हम लोकतंत्र को नहीं संभाल पाएगे।
लेकिन भारत ने पूरी दुनिया को गलत साबित करते हुए 1951-52 में पहला आम चुनाव अच्छे ढंग से सम्पन्न कराया।

आपको बता दें कि उस समय 497 लोकसभा सीटे और राज्य विधान सभा में 3283 थी।और 17 करोड़,32 लाख,343 रजिस्टर वोटर थे, जिसमें 85 वोटर निरक्षर थे।
उस समय वोट डालने की न्यूनतम 21 वर्ष थी।
यह चुनाव लगभग 5 महीने में 68 फेजों में सम्प्न्न हुआ।
हलाकिं उस समय कांग्रेस का वर्चस्व था इस चुनाव को कांग्रेस ने 346 लाकर इस चुनाव को जीता।
कांग्रेस को कुल 44.99 % वोट मिले थे।
कांग्रेस के अलावा सिर्फ दो ही पार्टी दहाई सीट जीत पाई। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी 16 सीट लाकर देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम लोहिया की पार्टी सोशललिस्ट पार्टी को 12 सीटे मिली थी।
इस चुनाव में कुल 53 पार्टियाँ और 1874 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य अजमाया था।
आचार्य कृपलानी के नेतृत्व वाली किसान मजदूर पार्टी को 9 सीटे मिली थी।
हिंदु महासभा को 4, भारतीय जनसंघ को 3 और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को 3 सीटे मिली थी।
उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू का कद बहुत बड़ा था लेकिन विपक्ष में जयप्रकाश नारायण, डा.राम लोहिया जैसै कई प्रतिभाशाली नेता मौजूद थे, लेकिन उनकी पार्टी सही ढंग से प्रचार प्रसार नहीं कर पाई।
क्योकिं वह सोशल मीडिया का नहीं बल्कि बैलगाड़ियो का जमाना था,आज की तरह इतने सारे न्यूज चैनल्स भी मौजूद नहीं था। पंडित नेहरू ने 40 हजार किलो मीटर का यात्रा किया और कुल साढ़े तीन करोड़ लोगों को संबोधित किया था।
हमे यह चुनाव जितना आसान लग रहा है उतना था नहीं।तब के वोटर पढ़े लिखे नहीं थे,वे मतदान पत्र के नाम भी नहीं पढ़ सकते थे।उनमें वोट देने का कोई मोटिवेशन नहीं था उन्हे वोटिंग बूथ लाने के लिए कंबल और बंदूक का लाइसेंस देने का वादा किया गया।
घर घर जाकर इनका रजिस्टेशन करना कठिन काम था,उस समय की महिलाएँ नाम पूछने पर फलां की पत्नी और फलां की माँ बताती थी।
पहाड़ो,जंगलों जैसै इलाके में जाने में काफी कठिनाई होती थी,कार्यकता को रास्ते में लूट लिया जाता, कभी बीमार पड़ जाते।
वोटर के लिए लोहे की मत पेटी बनाई गई थी, वो भी अलग अलग पार्टियों के लिए अलग अलग जिस पर उनके चुनाव चिन्ह बने हुए थे।
आपको बता दें कि पहले आम चुनाव प्रति वोटर चुनाव खर्च 60 पैसै आया था और यह 2019 में 72 रुपए प्रति वोटर हो गया।
यह चुनाव सुकुमार सेन के नेतृत्व में कराई गई थी।
इस चुनाव लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा,मोरारजी देसाई, सुभद्रा जोशी, जीवी मालवंकर जैसै कई नेताओं को जीत मिली और लाल बहादुर शास्त्री, गुलजारी लाल नंदा, मोरारजी देसाई को आगे चलकर देश का प्रधानमधत्री बनने का मौका मिला।
वही कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा, इस चुनाव में हमारे संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर को हार सामना करना पड़ा उन्हे बॉम्बे के कांग्रेस प्रतिनिधि नारायण सदोबा ने हरा दिया। मजदूर पार्टी के आचार्य कृपलानी को भी हार का सामना करना पड़ा।
तो ये थी देश के पहले आम चुनाव की कहानी कैसै लगी, हमें अवश्य बताएँ।