होली रंगों का पर्व है, कई रंगों के मिलने के कारण इसे “रंगोत्सव” कहते है।
होली में जितने रंग उतने ही ढंग से इसे मनाया जाता है।
ऐसा लगता है कि अलग अलग जगहों पर जाकर होली खुद को अलग रंगों में सरोबोर कर लेती है।
कई ऐसे लोक प्रदेश है। जहां की होली को एक खेलते हुए एक बार देख भी लिया जाये तो होली की यादें सारी उम्र साथ रहें।
सिर्फ ब्रज में ही होली के कई रुप देखने में आते है।
वृंदावन की होली (Vrindavan Holi – Holi of Vrindavan)
यहां की होली भूलाये नहीं भूलती। वृंदावन में एकादशी के साथ ही होली प्रारम्भ हो जाती है।
एकादशी के दूसरे दिन से ही कृ्ष्ण और राधा से जुडे सभी मंदिरों में होली का आयोजन प्रारम्भ हो जाता है।
एकाद्शी के दुसरे दिन लट्ठमार और फूलों की होली खेली जाती है।
फूलों की होली में ढेर सारे फूल एकत्रित कर एक दूसरे पर फेंका जाता है।
साथ ही राधे- राधे की गूंज के बीच आसमान से होली पर बरसते पुष्पों का नजारा द्वापर युग का स्मरण करा देता है।
वृंदावन में बांके बिहारी जी की मूर्ति को मंदिर से बाहर रख दिया जाता है।
मानो की बिहारी जी होली खेलने स्वयं ही आ रहे हो, यहां की होली सात दिनों तक चलती है।
सबसे पहले फूलों से, गुलाल से, सूखे रंगों से, गीले रंगों से सबको अपने रंग में डूबों देने वाली होली।
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली की छटा अनोखी होती है।
अपने आराध्य के साथ होली खेलने के लिए लोग कई घंटों तक लाईन में लगे रहते है।
बरसाने की लठमार होली (Lathmar Holi of Barsana – Barsana holi)
बरसाने की होली इसलिये भी प्रसिद्ध है, क्योकि श्री कृष्ण की प्रेमिका राधा बरसाने की थी।
और होली और श्री कृष्ण का संबन्ध बहुत पुराना है। इसलिये होली की बात हो, और कान्हा का नाम न आये, ऐसा कैसे हो सकता है यह होली विदेशों तक प्रसिद्ध है।
बरसाने की लठमार होली जिसमें गुजरियों के लट्ठों से पुरुष बचने का प्रयास करते है।
लठमार होली खेलने से पहले इन पुरुषों को खिलाया-पिलाया जाता है, इनकी सेवा की जाती है।
फिर इन पर लट्ठों से प्रहार किया जाता है, सर पर पगडी बांधे, हाथ में थाल नुमा ढाल से अपने को बचाते ये, अपने पर होने वाले लट्ठों के मार से बचाते है।
ढाल और लठों के इस खेल में यह ध्यान रखा जाता है कि कहीं इनको चोट न लग जायें, ऎसी होती है।
बरसाने की लठमार होली। साथ ही किसी अप्रिय हादसे से बचने के लिए बड़े मैदान में होली का आयोजन किया जाता है।
यहां पर होली का मजा पूरे एक हफ्ते तक लिया जा सकता है। बरसाने कि इस लट्ठ्मार होली में लोग नाचते और ठिठोली करते नजर आते हैं।
साथ ही लगती है, श्री राधे-राधे की जय-जयकार, जिसमें उत्साह और जोश से होली की मस्ती भरी होती है।
सभी एक दूसरे पर खूब रंग डालते है। इस पानी की एक बूंद पाने के लिये कृ्ष्ण श्रद्धालुओं में होड लग जाती है।
मथुरा की होली (Mathura Holi – Holi of Mathura)
बरसाने की लट्ठमार होली के बाद मथुरा की बलदेव (दाऊजी) में होली खेली जाती है।
कपडे के कोडे बनाकर ग्वालबालों पर गोपियां वार करती है। ब्रज धाम की असली होली का मजा यहीं लिया जा सकता है।
यहां स्थित हर राधा कृष्ण के मंदिर में अलग-अलग दिन होली हर्ष- उल्लास के साथ मनाई जाती है।
फूलों की होली और नृत्य मनोरम दृश्य पेश करते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर की होली की छटा अनोखी होती है।
बीकानेर की होली (Bikaneri Holi – Holi of Bikaner)

बीकानेर में एक अनोखे ढंग से होली खेली जाती है। बीकानेर में एक जगह पर “डोलची होली” खेली जाती है।
डोलची चमडे के बर्तन को कहते है, जिसमें पानी भर कर पीठ पर लाद कर पानी ढोने के काम में लिया जाता है।
यह होली बीकानेर के हर्शा चौक पर आयोजित की जाती है।
इस होली को देखने के लिये हजारों की तादाद में लोग यहां आते है।
बीकानेर की इस होली को खेलने के लिये डोलची में रंगीन पानी के साथ साथ स्नेह का गुलाल भी मिलाया जाता है।
इसके बाद स्त्रियां इसे भर कर पुरुषों की पीठ पर जोर से मारती है। मार की गूंज दूर तक जाती है।
होली की इस परम्परा का इतिहास करीब चार सौ साल पुराना है।
इसके अलावा होली के अवसर पर बीकानेर में स्वांग रचे जाते है।
अर्थात स्वांग बने लोग आपको यहां जगह- जगह देखने को मिल जायेगें। यह स्वांग का आयोजन आठ दिनों तक चलता हैं।
कोई भगवान भोले नाथ बना बैठा है, तो किसी ने विष्णु जी का रुप लिया हुआ है।
बनारस की होली (Banarasi Holi – Holi of Benaras)
बनारस में एकादशी तिथि के दिन से ही अबीर-गुलाल हवा में लहराने लगते है।
इस दौरान जगह- जगह पर होली मिलन समारोहों की धूम होती है।
जहां गुलाल लगा सभी एक -दूसरे से गले मिलते है। बनारस की होली पर अभी तक समय की धूल नहीं चडी है।
युवकों की टोलियां फाग के गीत गाती, ढोळ, नगाडों की थाप पर नाचती नजर आती है।
यहां की होली की परंम्परा के अनुसार बारात निकाली जाती हैं। जिसमें दुल्हा रथ पर सवार होकर आता है।
बारात के आगमन पर दुल्हे का परम्परागत ढंग से स्वागत किया जाता है।
मंडप सजाया जाता है। सजी धजी दुल्हन आती है। मंडप में दुल्हा दुल्हन की बहस होने के साथ बारात को बिना दुल्हन के ही लौटना पडता है।
इस प्रकार यहां एक अलग तरीके से होली मनाई जाती है।