अमेरिका ने जासूसी के शक में चीन के एक गुब्बारे को ढेर कर दिया।
इसके बाद से दोनों देशों के बीच कहासुनी चल रही है। वैसे जासूसी के लिए गुब्बारे और ड्रोन जैसी तकनीकें तो खूब आजमाई जा रही हैं, लेकिन जो काम जासूस कर सकते हैं, वो ये तकनीक नहीं।
बेहद शातिर ढंग से जासूस दूसरे देश के सारे भेद लेकर दूसरे तक पहुंचाते हैं। वो भी ज्यादातर बगैर खून-खराबे के।
मुर्गियां पालने वाला एक ऐसा ही शख्स था, जिसने नाजियों से अपनी नफरत के चलते हिटलर तक को चूना लगा दिया।
मजे की बात ये कि जर्मनी को सालों तक इसकी भनक तक नहीं लग सकी।
जुआन पुजोल ग्रेशिया को नाजियों से इतनी नफरत थी कि उन्हें हराने के लिए वो खुद जासूस बन गया।
वो भी बेहद शातिर जासूस, जो अपनी बात को सच साबित करने के लिए इस हद तक गया कि अपने एक नकली एजेंट को मरवाकर उसकी विधवा को इनाम तक दिलवाया, वो भी जर्मनी के हाथों।
दूसरे विश्व युद्ध में जर्मन्स की हार के पीछे इसी का हाथ माना जाता है।

स्पेन में एक रूई कारखाने के मालिक के यहां जन्मा जुआन पुजोल ग्रेशिया बिल्कुल आम लड़कों जैसा था।
उसे नहीं पता था कि उसे जिंदगी से उसे क्या चाहिए। अमीर पिता की संतान कभी रूई का बिजनेस करता, तो कभी दुकान में असिस्टेंट का काम खोज निकालता।
यहां तक पिता से भी जुआन की ठनी रहने लगी। पिता की मौत के बाद उसने तय किया कि रूई का धंधा बंद किया जाए और मुर्गियां पाली जाएं।
इसी समय स्पेन में गृह युद्ध छिड़ गया। महीनों की सैनिक ट्रेनिंग के दौरान जुआन ऊबने लगा।
वो देखता कि न तो स्पेन और न ही कोई और देश है, जो इंसानियत की वैल्यू करता है। इसी बीच ऊबे हुए इस शख्स ने प्रयोग की तरह ही मैड्रिड जाकर शादी कर ली।
जिंदगी पटरी पर आने ही लगी थी कि तभी दूसरे विश्व युद्ध की कहानी लिखी जाने लगी। स्पेनिश मूल के जासूस जुआन पुजोल ग्रेशिया ने सेकंड वर्ल्ड वॉर में डबल एजेंट का काम किया था।
जुआन को लगने लगा कि वो जासूसी कर सकता है।
जर्मनी से वो भरपूर नफरत करता था और इस समय ब्रिटेन ही उसे वो देश लगा, जो नाजियों को रोक सके।
जुआन ब्रिटिश सेना के पास जा पहुंचा कि, हमसे जासूसी करवा लीजिए। ब्रिटेन ने नई उम्र के इस युवक को तुरंत खारिज कर दिया।
जुआन ने तय किया कि पहले वो जर्मनी की जासूसी का नाटक करेगा। इससे उसके पास नाजियों के राज आ जाएंगे, और फिर ब्रिटेन उसे लेने से इनकार नहीं कर पाएगा।
प्लान काम कर गया.। जुआन खुद को नाजियों का घरघोर वफादार बताने लगा। उसके लिए छोटे-मोटे कई काम भी किए।
यहां तक कि ब्रिटेन के राज चुकाकर जर्मनी तक पहुंचाए। लेकिन बस उतने ही, जितने से कोई बड़ा नुकसान न हो।
अब जुआन एक डबल एजेंट था, जो जर्मनी से प्यार का दिखावा करता, लेकिन काम असल में उसकी हार के लिए कर रहा था।
नाजियों तक वो जानकारी पहुंचाता तो था, लेकिन या तो वे फेक होती थीं, या इतनी देर से मिलती थीं कि उसका कोई फायदा न हो, या फिर सेना के लिए वो किसी काम की नहीं होती थीं।
लेकिन सूचनाएं पहुंचाने का काम जुआन ने लगातार जारी रखा। ब्रिटिश सेना उसका भेद जानती थी और आराम से सूचनाएं दे देती थी।
मौत तक का नाटक
झूठ को सच दिखाने में माहिर इस स्पेनिश युवक ने नाजियों को लगातार झांसे में रखा।
यहां तक कि अपने एक एजेंट (जो कि कभी था ही नहीं ) की मौत का नाटक रच डाला। नाटक को सच दिखाने में ब्रिटिश सेना ने भी मदद की।
मरे हुए एजेंट की फोटो समेत श्रद्धांजलि अखबारों में छापी गई। नाजी इस मेहनत पर इतना पिघल गए कि मरे हुए नकली एजेंट की विधवा को बड़ा इनाम दे डाला।
कहने की बात नहीं कि वो विधवा भी फेक थी और इनाम सारा जुआन ने ले लिया।

जर्मन सेनाएं केले के पास तैयारियां करती रहीं, जबकि असल हमला नॉर्मेंडी से हुआ।
साल 1944 में ब्रिटिश और अमेरिकी सेनाओं ने मिलकर नॉर्मेंडी से होते हुए नाजियों को हराने की योजना बनाई।
जुआन को इसमें बड़ा काम मिला। उसे किसी तरह हिटलर की सेना को यकीन दिलाना था कि नॉर्मेंडी पर तो हल्की-फुल्की लड़ाई हो रही है, असल हमला केले शहर के पास होगा।
इस प्लानिंग को ऑपरेशन ओवरलोड नाम दिया गया। आम भाषा में इसे डी-डे भी कहते हैं।
अपनी बात को सच साबित करने के लिए जुआन ने ब्रिटिश और अमेरिकी सेना अधिकारियों की झूठी-सच्ची बातों की रिकॉर्डिंग तक जर्मन्स को भेजीं थी।
यहां तक कि नकली एयरफील्ड, टैंकों और शिप्स की आवाज और नक्शे तक भेजे गए। खेल चल निकला जर्मन सेनाएं केले के पास तैयारियां करती रहीं, जबकि हमला नॉर्मेंडी से हुआ।
आधी रात दिया संदेश
डी-डे से ठीक एक रात पहले जुआन ने सुबह के 3 बजे रेडियो सिग्नल भेजा, जिसमें हमला नॉर्मेंडी की सीमा से होने की बात थी।
ये सच था। लेकिन सुबह जब तक रेडियो ऑपरेटरों ने मैसेज डिकोड किया, तब तक जंग छिड़ चुकी थी।
इतना जरूरी संदेश इतनी देर से भेजने पर सवाल किया गया तो मुर्गियां पालने का शौक रखने वाले जुआन ने कहा- अगर आदर्शों की बात न होती तो कब का मैं ये खतरनाक काम छोड़ चुका होता!
जंग खत्म होने के बाद जुआन का सच नाजियों के सामने आ चुका था। जान का खतरा देखते हुए जुआन ने साल 1949 में अपनी ही मौत का नाटक रचा।
यहां तक कि आखिर तक किसी को पता नहीं लग सका कि वो किस नाम से और कहां रह रहा है।
माना जाता है कि खुद ब्रिटिश सेना ने उसे परिवार समेत सुरक्षित वेनेजुएला पहुंचा दिया था।