नियमों के अनुसार जनसंख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से क्षेत्र को वार्डों में बांटा जाता है और समय-समय पर उनका परिसीमन भी किया जाता है। लेकिन अनूपपुर की बिजुरी नगर पंचायत में लगातार नियमों की अनदेखी हो रही है। नगर पंचायत बिजुरी के तहत वार्ड के परिसीमन की अवधि को बीते हुए लगभग 6 माह हो चुके हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
परिसीमन को लेकर पिछले वर्ष 22 जुलाई 2020 को नगर पंचायत ने प्रस्ताव पारित करते हुए कलेक्ट्रेट से बात की थी। कलेक्टर ऑफिस ने भी कोतमा के एसडीएम को पत्र लिखकर कार्यवाही पूरी किए जाने के निर्देश दिए थे।
प्रस्ताव पारित हुए लगभग आधा साल हो चुका है पर वार्डों के परिसीमन की कार्यवाही अभी तक शुरू नहीं हो पाई है। इलाके की जनसंख्या और क्षेत्रफल के अनुसार वार्डों का परिसीमन ना हो पाने की वजह से क्षेत्र के अनेक विकास कार्यों में परेशानियां आ रही हैं।
बिजुरी नगर पंचायत के उपाध्यक्ष सतीश शर्मा ने 16 जून को बिजुरी नगर पंचायत के वार्ड के परिसीमन से संबंधित एक पत्र कोतमा एसडीएम को सौंपा था। इस पत्र में वार्डों के विस्तार, उनके परिसीमन, जनसंख्या घनत्व, क्षेत्रफल आदि के पुनर्संयोजन की बात कही गई थी। उपाध्यक्ष द्वारा लिखे गए पत्र को 2 महीने से अधिक का समय बीत चुका है पर जमीन पर कोई काम होता नहीं दिख रहा है।
जानकारी है कि वार्डों के परिसीमन से संबंधित कार्यों का जिम्मा कोतमा के एसडीएम ऋषि सिंघाई को सौंपा गया था। लेकिन एसडीएम कार्यालय का कहना है की कोरोना के लॉकडाउन के कारण परिसीमन का कार्य बाधित हो गया है। फिर से कलेक्टर द्वारा परिसीमन के विषय में नए सिरे से बात शुरू की जा रही है।
बिजुरी नगर पंचायत परिषद का पंचवर्षीय कार्यकाल शीघ्र ही समाप्त होने वाला है। ऐसी स्थिति में परिषद द्वारा जल्द से जल्द परिसीमन कराने और आरक्षण सहित चुनाव कराने की मांग की जा रही है।
वार्डों के परिसीमन में जनसंख्या घनत्व का काफी महत्व होता है। वर्ष 1991 में नगर पंचायत में 17000 मतदाता दर्ज किए गए थे जो कि 2011 की जनगणना में बढ़कर लगभग 32000 हो गए हैं। 2011 की जनगणना को हुए भी 10 साल बीत चुके हैं। जबकि आबादी को देखते हुए 2011 में ही वार्डों के परिसीमन की आवश्यकता जताई गई थी।
इलाके के कई वार्डों में तेजी से जनसंख्या वृद्धि हुई है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है की जनसंख्या और क्षेत्र के हिसाब से जितना बजट वार्डों को दिया जाना चाहिए उतना नहीं मिल पा रहा है, जिससे विकास कार्य अधूरे पड़े हुए हैं।