विभिन्न विभागों में महीनों और सालों से लटकी हुई शिकायतें, अर्जियां, प्रकरण और केस कोई नई बात नहीं है। हजारों की संख्या में विभिन्न विभागों में प्रतिदिन शिकायतें और मामले दर्ज होते हैं और कई महीनों तक वैसे ही पड़े रहते हैं। संभाग के राजस्व विभाग का भी कुछ ऐसा ही हाल है।
संभाग के तीनों जिलों के राजस्व कार्यालयों में 20000 से भी ज्यादा मामले महीनों से लटके हुए हैं। इनमें से 7000 मामले तो पिछले 6 माह से हल नहीं किए गए। लंबित मामलों में लगभग 1400 केस जमीन के बंटवारे, नामांतरण और सीमांकन के हैं।
अनेकों बार उच्च अधिकारियों द्वारा राजस्व मामले निपटाने के आदेश दिए जाते हैं। तरह-तरह के अभियान निकाले जाते हैं इसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं आता। पिछले दिनों भी राजस्व सेवा अभियान नाम का एक कार्यक्रम शुरू किया गया जिसमें राजस्व अधिकारियों को जल्द से जल्द मामले निपटाने के निर्देश दिए गए।
आंकड़े बताते हैं कि संभाग के तीनों जिलों में जमीन के सीमांकन के 1971, बंटवारे के 2144, और नामांतरण के 4460 मामले लटके हुए हैं। चलिए बंटवारे और नामांतरण में तो दो पक्ष में विवाद की स्थिति भी हो सकती है, इसलिए उन में देरी हो जाती है। लेकिन सीमांकन जैसे एक पक्षीय कार्य में भी लोगों को महीनों इंतजार करना पड़ता है। संभाग में केवल सीमांकन के ही 228 ऐसे मामले हैं जो पिछले 6 माह से लंबित हैं। इनमें से अनूपपुर के 49 शहडोल के 72 और उमरिया के 107 मामले हैं।
जब राजस्व विभाग के अधिकारियों को समय पर तनख्वाह मिल जाती है, उन्हें फैसले लेने के पूरे अधिकार हैं, कार्यवाही में लगने वाला सारा आधारभूत ढांचा है, इसके बाद भी सीमांकन जैसे मामले को भी हल होने में महीनों क्यों लग जाते हैं? इसका उत्तर बहुत सरल है- घूसखोरी! राजस्व अधिकारी जानबूझकर जमीन के मामलों की तारीख बढ़ा-बढ़ा कर उन्हें टालते जाते हैं। ताकि आखिर में व्यक्ति हताश होकर अपना काम कराने के लिए अधिकारी को पैसे खिलाए।
ग्रामीण इलाके इलाकों का आदमी वैसे ही बहुत सीधा सरल होता है, जागरूक नहीं होता है इसी बात का फायदा यह राजस्व अधिकारी उठाते हैं और मनमानी रिश्वत वसूल कर लेते हैं। आम आदमी को भी मजबूरी के कारण रिश्वत देना पड़ता है। छोटे से छोटे काम के लिए भी अधिकारी समय लगाते हैं और बड़ी भारी घूस वसूलते हैं। आम गरीब आदमी को भी यहां वहां से पैसों का इंतजाम करके इन अधिकारियों को घूस खिलाना पड़ता है।
लोग यही समझते हैं कि काग़ज़ी कार्यवाही में लंबा समय लगता है। लेकिन आजकल जब सब कुछ ऑनलाइन हो चुका है, घंटों का काम मिनटों में हो रहा है, इसके बाद भी महीनों लोग राजस्व विभाग के चक्कर में फंसकर भटकते रहते हैं। उच्च अधिकारियों द्वारा इस विषय पर ना तो कभी जांच की जाती है और ना ही अधिकारियों से जवाब मांगा जाता है। आम आदमी की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है।
जब स्थिति बहुत ज्यादा अनियंत्रित हो जाती है तब उच्च अधिकारियों द्वारा दिखावे के लिए कभी कुछ अभियान, तो कोई कानून या आदेश निकाल दिए जाते हैं। इसी तरह का एक अभियान संभाग में भी शुरू किया गया है। राजस्व सेवा अभियान के तहत जल्द से जल्द राजस्व मामलों को निपटाने का लक्ष्य तय किया गया है।
संभाग के आयुक्त राजीव शर्मा ने संभाग के तीनों जिलों के कलेक्टर और राजस्व अधिकारियों को राजस्व मामले जल्द से जल्द निपटाने के आदेश दिए हैं। संभागायुक्त ने अधिकारियों को 15 सितंबर तक का समय दिया है। संभाग आयुक्त का कहना है यदि राजस्व अधिकारी वर्ग के द्वारा कोई गड़बड़ी यह लापरवाही बरती गई तो उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।
क्या इस तरह के अभियान जिले या संभाग में पहली बार शुरू किया गया है? नहीं ऐसा नहीं है। वर्षों से इस तरह के अभियान और आदेश पारित होते आए हैं। अधिकारियों का दौरा होता है, बैठके होती हैं, समीक्षा होती है और भाषणबाज़ी होती है। लेकिन नहीं होता है तो सिर्फ परिस्थिति में बदलाव। आम आदमी पहले भी विभागों के चक्कर लगाने में अपनी चप्पलें घिसता था और आज भी वही हाल है।