एक के बाद एक हर विभागों के कामों की पोल खुलती जा रही है। विभागों की लापरवाही से शिक्षा का क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। अनूपपुर जिले के कोतमा में कुछ ही सालों पहले, सन् 2016 में मॉडल स्कूल बनाया गया था। पूरे स्कूल की लागत लगभग 3 करोड रुपए थी। लेकिन 5 सालों में ही स्कूल जर्जर स्थिति को पहुंच चुका है। स्कूल में जहां-तहां दरारें देखने को मिलती हैं। वहीं खिड़कियों के कांच भी गायब हो चुके हैं। जानकारी यहां तक है कि स्कूल परिसर में लगे पानी के
पाइप और मशीन को भी चोरों द्वारा चोरी कर लिया गया है। वहीं स्कूल में बाउंड्री ना होने की वजह से स्कूल के मैदान पर क्षेत्रीय लोगों द्वारा अवैध कब्जा किया जा रहा है। स्कूल के कमरों में भी दूसरी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है।
गड़बड़ी की स्थिति केवल यहीं पर नहीं रुकती, बल्कि सबसे बड़ी समस्या तो शिक्षण को लेकर है। स्कूल खुले 5 साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक मॉडल स्कूल में शिक्षकों की पूरी तरह नियुक्ति नहीं हो पाई है। मॉडल स्कूल में शिक्षकों के 14 पद विभागों द्वारा स्वीकृत किए गए थे। लेकिन वर्तमान स्थिति में स्कूल में केवल दो ही शिक्षकों की नियुक्ति हो सकी है। आज भी स्कूल में 12 शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं। यानी पूरा स्कूल केवल 2 शिक्षकों के जरिए ही चलाया जा रहा है।
प्रशासन द्वारा 1 सितंबर से छठवीं से आठवीं तक के स्कूलों को खोलने का फैसला लिया गया था। जबकि नौवीं से बारहवीं तक के स्कूल 1 महीने पहले ही खोले जा चुके थे। स्कूल प्रशासन को पहले से ही स्कूलों के खोले जाने की जानकारी थी इसके बावजूद भी प्रशासन द्वारा ना तो स्कूल में साफ सफाई की गई ना ही शिक्षकों का इंतजाम किया गया। स्कूल की प्रत्येक कक्षा में लगभग 100-100 विद्यार्थी पंजीकृत हैं। इतनी भारी संख्या में विद्यार्थी हैं, और स्कूल में केवल दो शिक्षकों की नियुक्ति है।
एक स्थानीय शिक्षक से मीडिया की हुई बात में पता चला है कि शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा स्कूल के दूसरे काम सौंप दिए जाते हैं। उनकी ड्यूटी कहीं रजिस्टर और फाइल भरने में, कहीं इलेक्शन कराने में, तो कहीं अन्य व्यवस्थाओं में लगा दी जाती है। साथ ही संविदा शिक्षकों को वेतन भी बहुत कम दिया जाता है। यही कारण है कि शिक्षक स्कूल पहुंचने में आनाकानी करते हैं।
इसका सीधा सीधा असर बच्चों के भविष्य पर पड़ रहा है। ये बच्चे दूर-दूर के इलाकों से स्कूल में पढ़ने आते हैं और शिक्षकों के ना होने से बिना पढ़ाई किए ही वापस घर लौट जाते हैं। कोरोना काल में वैसे ही पढ़ाई की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। बच्चों को जनरल प्रमोशन देकर उन्हें अगली कक्षा में भेजा जा रहा है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था से पढ़ कर निकले बच्चे भविष्य में इस देश के लिए अपना कितना योगदान दे सकेंगे यह देखने की बात है। प्रशासन हर बार की तरह बहाने करके बात को टालने में लगा है।