कोतमा जनपद के अंतर्गत वन क्षेत्र में स्थित आक्रोशित ग्रामीणों ने जनपद कार्यालयों का घेराव कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन एसडीएम ऋषि सिंघई को सौंपा। आज़ादी के 7 दशक बाद भी विधुत व्यवस्था बैगाडबरा एवं निम्हा नहीं पहोंच पाई है। जिस कारणवश उग्र ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा है।
यहाँ के ग्रामीणों का यह कहना है की ग्राम पंचायत बेनीबहरा में ग्राम निम्हा और ग्राम पंचायत थानगांव अंतर्गत स्थित ग्राम बैगाडबरा, जो की वन क्षेत्र में स्थित है, जिस कारणवश आज तक इन ग्रामो में विधुत लाइन का विस्तार नहीं हो पाया और उस कारण विधुत सुविधा के लाभ से वह कभी मुहैया नहीं हो पाए।
हाल ही में यहां दो ग्रामीणों को भालू घायल कर चुके हैं, जिसने ग्रामीणों की चिंता को और बढ़ा दिया है। चिंतित ग्रामीणों ने मांग में दोनों प्रभावित ग्रामो में विधुत व्यवस्था, हर्री बगीचे से नदिया टोला तक विद्युत्तीकरण का कार्य कराने, पुल निर्माण, पंचायत थानगांव में डोंगरी टोला, घोघरा बस्ती एवं कुदरी से बेनी बहरा मार्ग का निर्माण कराने की मांग की है।
थानगांव के उपसरपंच रामजी, रिंकू मिश्रा, मंगलदीन साहू, जनपद अध्यक्ष मनीषा सिंह, सरस्वती प्रसाद सहित बड़ी संख्या में ग्रामीणजन ज्ञापन सौम्पते समय उपस्थित रहे। अंत में उन्होंने कहा की समय में इन मांगो की पूर्ति न होने पर उन्हें आंदोलन के लिए विविश होना पड़ेगा।
प्रदेश में 1 सितंबर से आठवीं से बारहवीं तक के स्कूल खोले जाने का फैसला लिया गया था। तब से लेकर आज तक लगभग 10 दिनों का समय बीत चुका है लेकिन स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है। स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति कहीं 25% कहीं 30% तो कहीं 40% ही आंकी जा रही है।
वैसे तो स्कूलों को केवल 50 फ़ीसदी क्षमता के साथ खोलने के आदेश दिए गए थे इसके बाद भी स्कूल में बच्चों की उपस्थिति का आंकड़ा 50% तक नहीं पहुंच पा रहा है। बच्चों के स्कूल न पहुंचने के कई तरह के कारण बताए जा रहे हैं।
जिनमें सबसे पहला कारण है कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका। इसके कारण अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने से बच रहे हैं। साथ ही तीज त्यौहार का माहौल देखते हुए भी स्कूल में बच्चों की कम उपस्थिति देखी जा रही है। कई बच्चे दूरदराज के इलाकों से स्कूल आते हैं। फिलहाल कोरोना के कारण सार्वजनिक वाहनों की सुविधा ना होने की वजह से भी बच्चे स्कूल नहीं पहुंच पा रहे हैं।
कई बच्चों के स्कूल न पहुंचने का कारण यह भी है कि अभी तक हॉस्टल नहीं खोले गए हैं। बहुत दूर दराज के इलाके के बच्चे हॉस्टल में रहकर पढ़ाई किया करते थे। स्कूल तो खोले जा चुके हैं लेकिन अब तक हॉस्टल को नहीं खोला गया है। इसलिए बच्चों को स्कूल पहुंचने में परेशानी हो रही है।
कई बच्चों से बात करने में यह पाया गया कि पिछले डेढ़ साल से स्कूल बंद होने से उनमें पढ़ाई लिखाई की आदत पर भी असर पड़ा है। बच्चे पहले की तुलना में देर तक बैठकर पढ़ाई करने की मानसिक स्थिति में नहीं हैं। यही कारण है कि वह स्कूल आने से भी कतरा रहे हैं।
वैसे तो बच्चों के अभिभावकों को कई प्रकार से स्कूल खोलने की जानकारी दी गई थी। व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए, फोन करके और भी अन्य तरीकों से उन्हें स्कूल खोलने के बारे में बताया गया था। इसके बाद भी बच्चे स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं। स्कूल प्रशासन द्वारा बच्चों की सुरक्षा के कई तरह के इंतजाम किए गए हैं। एक बेंच में एक ही बच्चे को बैठाया जा रहा है। छात्रों की संख्या के अनुरूप पढ़ाई का शेड्यूल भी अलग-अलग समय पर तय किया गया है। इसके बाद भी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति नहीं देखी जा रही है।
जिला शिक्षा अधिकारी रणमत सिंह का कहना है कि स्कूल में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ाने के हर तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। विभिन्न ऑनलाइन माध्यमों से शिक्षक एवं प्राचार्य बच्चों के अभिभावकों से मीटिंग कर रहे हैैं, और उन्हें बच्चों को स्कूल भेजने के लिए कह रहे हैं।
लेकिन शायद इतने प्रयास काफी नहीं है। प्रशासन को स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए और भी तरह के उपाय करने की आवश्यकता है। वाहनों की सुविधा, टीकाकरण में तेजी, बच्चों के अभिभावकों में जागरूकता जैसे कामों पर सरकार को और प्रयास करने की आवश्यकता है।