कोरोना की संभावित तीसरी लहर से पहले ही अनूपपुर में डेंगू तेजी से पांव पसार रहा है। अब तक कॉलरी क्षेत्र में दो संक्रमित मरीजों की पुष्टि हुई है लेकिन बावजूद इसके जिला मलेरिया विभाग सतर्क नही हुआ है।
मलेरिया विभाग के साथ साथ नगरी प्रशासन और ग्राम पंचायत जनप्रतिनिधियों की भी इस ओर ध्यान देने की कोई मंशा नजर नही आ रही। बात केवल 2 मरीजों की हो लेकिन, डेंगू के अन्य जिलों में बढ़ते प्रकोप को मद्दे नज़र रखते हुए इसका प्रकोप न फैले ऐसी प्रशासन की रणनीति होनी चाहिए।
प्रशासना की ये लापरवाही ज़िले पर भारी पड़ सकती है। 2018 का ही एक उदहारण देखा जा सकता है जब राजनगर के पोराधार में मिले एक मरीज के बाद डेंगू का पैर ऐसा पसरा की पांचसौ से अधिक लोग इसका शिकार हो गए।
जिसके बाद प्रशासन द्वारा पुष्पराजगढ़, कोतमा एयर अनूपपुर के कॉलरी क्षेत्र में सर्वेक्षण कार्य करते हुए सफाई और दवाई का काम करने के बाद राहत की सांस ली गई थी।
क्या प्रशासन अब डेंगू मरीजों के बड़े आंकड़े का इंतजार कर रहा है? अब प्रशन यह उठता है की क्यों कोई सबक नही लिया जा रहा पहले की गतिविधियों को देख कर के? आखिर क्यों प्रशासन हाथ पर हाथ लिए बैठी है? नगरपालिका में 50 लाख से अधिक कीमत की फॉगिंग मशीन अब मात्र शो पीस बन के रह गई है। न ही इखट्टे पानी पर दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है जिस कारणवश जमा पानी में डेंगू के लार्वा पैदा होने लगे है।
विभाग से प्राप्त जानकारी में ये सामने निकल कर के आया है की पिछले 9 महीने के अंतराल में विभागीय अमला द्वारा जिले के 728 गांवों में से 144 गांवों का डेंगू संबंधित सर्वेक्षण किया गया है।
जिसमे अमले ने 22838 घरों से 1118 डेंगू के लार्वा को खोजकर उसे नष्ट करने की कारवाई की थी। जिसमे से 66410 कंटेनर की जांच हो चुकी है जिसमे 2448 कंटेनर में लार्वा पाया गया है।
क्यों पानी पर दवाई का छिड़काव है जरूरी?
विशेषज्ञों के अनुसार मलेरिया और डेंगू के लार्वा 9 दिन के अंदर वयस्क का रूप धारण कर लेते हैं। यदि ये वयस्क जमीन पर गिर जाते हैं तो ये स्वतः समाप्त हो जाते हैं। इसलिए जमा पानी को साफ करने से या फिर उसमे केरोसीन जला ऑयल या कीटनाशी के छिड़काव की सलाह दी जाती है।