आज विश्व पर्यटन दिवस पर पर्यावरण प्रशासन ने उमरिया जिले के मुख्य स्थलों को विकसित करने की मांग की हैं।क्योंकि यह साल थीम पर्यटन और ग्रामीण विकास पर मनाया जा रहा है। आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले में प्रकृति संसाधनों का भण्डार है।
ये एक ऐसा सुंदर जिला हैं जहां पहुंचने के बाद लोगों को प्रकृति के पास होने का एहसास होता है।और इसे संवारने से स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी मिल सकते हैं पर फिर भी जिला गठन के दो दशक बीत जाने के बाद भी इन स्थलों को अपने भागीरथी का इंतजार है।
चंदिया में कौड़िया मार्ग पर मछड़ार नदी में जोझा फाल खूब प्रसिद्ध है। बांधवगढ़ बफर के जंगल से लगा मछड़ार नदी का पानी 30- 40 फीट की ऊंचाई से नीचे पत्थरो में गिरता है। अक्सर यहां उमरिया व कटनी से लोग पिकनिक मनाने परिवार समेत पहुंचते हैं।
कॉलीन धरोहरों में मदीबाह का शिव मंदिर कि भी मान्यता है कि अज्ञातवश में पाण्डवों ने मंदिर का निर्माण किया था। शहर में उगते सूर्य की पहली किरण इसी शिव मंदिर में पड़ती है। जंगल के बीच पहाड़ में यह क्षेत्र पिकनिक स्पॉट व नेचर वॉक की दृष्टि से भरपूर है। कई बार इसे संवर्धित करे प्लान बना भी पर अब ये उद्धार नहीं हो पाया।
प्रशासन द्वारा दर्शनीय स्थलों को विकसित करने की आवश्यकताएं- चंदिया में स्थित झोझा फॉल जबलपुर के भेड़ाघाट जैसा है जिसे भी पर्यटकों के लिए विकसित किया जा सकता है। यहां घाट तक पहुंचने का रास्ता और कैंटीन की आवश्यकता है। वही चंदिया के पास स्थित पथरहठा गांव पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यहां सांस्कृतिक मूर्तियां भारी संख्या में हैं तो इस स्थान को सांस्कृतिक मूर्तियों के संग्रह का रूप भी दिया जा सकता है।
उमरिया से पांच किलोमीटर पर जंगल के बीच में स्थित कल्चुरी कालीन मणिबाग का ऐतिहासिक मंदिर भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है जहां रात में आराम करने के लिए पर्यटक इच्छा जताते हैं। इसके अलावा सगरा मंदिर और सिद्घ घाट का भी प्रशासन द्वारा विकास और विस्तार किया जा सकता है।
उमरिया के जिला कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव कहना है की उमरिया के सभी स्थलों में पर्यटकों को पहुंचाना उनके लिए चुनौती भरा काम है। क्योंकि बांधवगढ़ में बाघ दर्शन को ही पर्यटक ज्यादा महत्व देते है। उन्होंने ये भी कहा कि शहर में एक तालाब को चिन्हित कर चारों तरफ पाथ व सौंदर्यीकरण की कार्ययोजना पर काम किया जा रहा है।