एक दिन पहले ही शहडोल के कुशाभाऊ ठाकरे अस्पताल में आईसीयू वार्ड की छत के गिरने का मामला सामने आया था। इस दूसरी खबर से अस्पताल प्रबंधन पर और भी सवाल उठने लगे हैं।
जानकारी है कि अस्पताल से निकलने वाले खतरनाक मेडिकल वेस्ट को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के नियमों की अनदेखी कर डिस्पोज किया जा रहा है।
अस्पताल का यह कचरा खतरनाक तो होता ही है साथ ही जहरीला भी होता है। इसलिए इस मेडिकल कचरे के निपटारे के लिए निर्धारित कानून है, लेकिन कुशाभाऊ ठाकरे अस्पताल में नियमों का धड़ल्ले से मखौल उड़ाया जा रहा है।
बगैर किसी उपचार के पूरा कचरा अस्पताल परिसर के पीछे फेंका जा रहा है। इससे पहले कि इस मामले की शिकायत कलेक्टर ऑफिस या जांच कमेटी तक पहुंचती, पूरे कचरे को आग के हवाले कर दिया गया।
इस कचरे को जलाने से निकलने वाला धुआं भी खतरनाक होता है जो बीमारी फैला सकता है और जान भी ले सकता है। लेकिन अस्पताल प्रबंधन को इसकी कोई परवाह नहीं है। कुशाभाऊ ठाकरे अस्पताल में जब से दंत चिकित्सक जीएस परिवार की सिविल सर्जन के तौर पर पदोन्नति हुई है तब से अस्पताल विवादों में ही रहा है।
जानकारी है कि राजनेताओं की पहचान और बैक डोर के पैसे से डाक्टर ने यह प्रमोशन पाया है। उनकी इस पदोन्नति में न तो सीनियर जूनियरका खयाल रखा गया न ही नियमों को देखा गया और प्रमोशन कर दिया गया। इतना ही नहीं सिविल सर्जन पर रोगी कल्याण समिति हो या फिर रेड क्रॉस सोसाइटी, इनके करोड़ों रुपयों के घोटाले की अफवाहें भी सामने आती रहती हैं।
मेडिकल वेस्ट को यूं खुले में फेंकना या आग लगाना खतरनाक तो है ही साथ ही राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों के खिलाफ भी है। अस्पताल के ऐसे कचरे के निपटारे के लिए निर्धारित बजट और मशीनरी दी जाती है लेकिन अस्पताल में इस तरह की कोई सुविधा नहीं है।
पिछली बार जब अस्पताल की छत के गिरने का मामला सामने आया था तो सिविल सर्जन डॉ परिहार ने मामले को खुद ही रफा-दफा कर विज्ञप्ति भी जारी कर दी थी। इस बार भी उम्मीद की जा रही है कि इस कचरे के निपटारे के गंभीर विषय को भी इसी तरह आग लगा दी जाएगी और सबूतों को राख कर दिया जाएगा।
प्रशासन द्वारा स्वास्थ्य व्यवस्था में हो रही गड़बड़ियों की लगातार अनदेखी की जा रही है और अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। प्रशासन को चाहिए कि इन विषयों पर गंभीर विचार करते हुए मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए।