उमरिया जिले के कई आदिवासी बाहुल्य गांव ऐसे हैं जहां आज तक प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना का लाभ नहीं पहुंच पाया है। 2015 में शुरू हुई इस आवास योजना को 6 साल से भी ज्यादा का समय बीत चुका है लेकिन करकेली जनपद के कई गांव के लोग आज भी खपरैल और कच्चे मकानों में रहने को मजबूर हैं। प्रशासन द्वारा आवास निर्माण न हो पाने की वजह 2011 की सर्वे सूची में ग्रामीणों के नाम का न होना बताया गया है। 2018 में फिर से जिला मुख्यालय द्वारा आवास प्लस कार्यक्रम के तहत इन ग्रामीणों को पक्का घर दिलाने का वादा किया गया था, इसके बाद भी अब तक स्थिति में कोई बदलाव नहीं हो सका है।
लोग दरकती दीवारों व खपरैल से टपकते पानी के नीचे रात काटने को मजबूर हैं। करकेली जनपद के गुढ़ा, बांसा और राजटोला गांव आदिवासी बाहुल्य हैं यहां के अधिकतर लोग पक्का मकान न हो पाने की वजह से कई प्रकार की मुसीबतों का सामना कर रहे हैं।
इनमें से एक गांव के निवासी राजू कोल का कहना है कि गांव में किसी को भी प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। ग्रामीणों द्वारा कई बार हेल्पलाइन नंबर और कलेक्टर ऑफिस में शिकायत भी भेजी गई लेकिन फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। इसी तरह अठई कोल नामक एक व्यक्ति का घर बरसात में गिर गया और वह छत पर पन्नी लगा कर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। उनका कहना है कि कुछ ही दिनों में उन्हें बेटी की शादी करनी है लेकिन रिश्तेदारों को घर में बैठाने तक की जगह नहीं है।
प्रशासन की ही गड़बड़ी है कि 2011 की पात्रता सूची में ग्रामीण लोगों के नाम गायब हो गए। हालांकि प्रशासन द्वारा 2018 में छूटे हुए पात्र लोगों के लिए आवास प्लस का सर्वे कराया गया इसके बाद भी 3 वर्ष बीत चुके हैं और अभी तक इन लोगों को इनका आवास नहीं मिल पाया है। सरकारी आंकड़ों की मानें तो करकेली जनपद में 2016 से 2021 के बीच में 52279 आवास निर्माण का लक्ष्य था जिनमें से 40000 आवास बनाए जा चुके हैं केवल 12000 ही शेष हैं। जबकि लगभग 9200 पात्रों के आवास निर्माण का काम किश्त के न आने की वजह से अटका हुआ है।
प्रशासन यह भी स्वीकार कर रहा है कि कोविड-19 के चलते आवास निर्माण की गति धीमी हुई थी। इस विषय पर उमरिया जिले के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने काम में हो रही देरी में जांच कराकर दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की बात कही है। उम्मीद है जल्द से जल्द आदिवासी लोगों को इनका पक्का मकान मिल सकेगा।