कई समय से लगातार विवादों में घिरा शहडोल का देवांता अस्पताल एक बार फिर सबके चर्चों का विषय बन चुका है। दरअसल हाल ही में पता चला है कि पूर्व के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और कथित मैनेजमेंट बाबू की जुगलबंदी ने अस्पताल को मान्यता तो दे दी है किंतु मान्यता के लिए सभी पैरामीटर पर खरे न उतरने से अस्पताल प्रशसान पर कई सवाल खड़े हो चुके है।
पहले भी ऐसे कई आरोप लगाए गए है कि देवांता अस्पताल में मृत जनों को बेवजह वेंटीलेटर पर रख के उनके परिजनों से पैसा वसूला जाता था, और सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय तो देवांता अस्पताल में काम करने वाले एक फ़र्ज़ी डॉक्टर को लेकर था।
ऐसा पता चला था कि देवांता अस्पताल में काम करने वाले एक डॉक्टर की डिग्री फर्ज़ी है। इस डॉक्टर ने कभी एमबीबीएस किया ही नहीं बल्कि किसी मेडिकल इंस्टिट्यूट से फर्ज़ी डिग्री बनवा कर, अस्पताल में संचालन शुरू कर दिया था।
अब इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो सिर्फ जांच कमेटी ही बता सकती है। और सच्चाई तो तब पता चलेगी, जब जांच कमेटी द्वारा इस खबर के सभी फैक्ट्स की निष्पक्ष रूप से जांच की जायगी।
देवांता अस्पताल किसी भी रूप में मान्यता का हकदार नहीं नज़र आ रहा है। सूत्रों के अनुसार इस अस्पताल में जिन डॉक्टरों को नियमित बताया गया है, उनमें से अधिकतम डॉक्टर विजिटर हैं, और बाकियों का तो मालूम ही नहीं। सिर्फ इतना ही नहीं, फ़िज़ियोथेरेपिस्ट को भी डॉक्टर का पद दे दिया गया है।
अब सवाल यह है कि जिस अस्पताल में इतने सारे नियमों का उल्लंघन किया गया हो, उसे मान्यता मिली तो मिली कैसे?
इसका जवाब साफ-साफ पूर्व के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, मैनेजमेंट, एकाउंटेंट और बाबू की मिलीभगत है। इन सभी की मिलीभगत से इस अस्पताल को लाइसेंस मिला, जिस पर स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन को जल्द से जल्द जांच कर सख्त कार्यवाही और सजा देने की आवश्यकता है। वरना देवांता अस्पताल में आगे भी इसी तरह गुनाह होते रहेंगे, और मासूम लोगों की ज़िन्दगियों के साथ भी खिलवाड़ होता रहेगा।