2003 में गठित किया गया अनूपपुर जिला पहले तो अपने शहर के बस स्टैंड की मांग के लिए बरसों इंतजार करता रहा, फिर 11 साल बाद 2014 में बस स्टैंड की सौगात मिली, लेकिन इसके बाद भी आज तक बस स्टैंड का काम पूरा नहीं हो सका। बस स्टैंड के लिए दो करोड रुपए का बजट स्वीकृत किया गया था और रेलवे लाइन के पास ही नगर पालिका और राजस्व विभाग ने स्थान का चयन करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों 2014 में ही भूमि पूजन करा दिया था।
भूमि पूजन के बाद इस स्थान पर रैन बसेरा, यात्री प्रतिक्षालय, सुलभ कांपलेक्स, बस अड्डा आदि के लिए एक करोड़ रुपए से भी ज्यादा की राशि खर्च कर दी गई लेकिन बाद में रेलवे विभाग ने आपत्ति दायर करते हुए इस स्थल पर बस स्टैंड के संचालन का कार्य रुकवा दिया। अंडर ब्रिज के समीप बने इस बस स्टैंड को लेकर शुरू से ही रेल विभाग अपनी आपत्ति दर्ज कराता रहा है।
विभाग का कहना है कि रेलवे लाइन से बहुत नजदीक होने के कारण इस बस स्टैंड में हादसों की आशंका बनी रहेगी इस कारण यहां बस स्टैंड नहीं बनाया जाना चाहिए। रेलवे की बात को अनदेखा करते हुए नगर पालिका और राजस्व विभाग द्वारा लगातार यहां पर निर्माण कार्य कराया जा रहा था लेकिन अब रेलवे ने प्रत्यक्ष रूप से यह जाहिर कर दिया है कि वह बस स्टैंड निर्माण के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं देगा।
यही वजह है कि करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी अब फिर से बस स्टैंड निर्माण का कार्य रुक गया है। अब तक इस बस स्टैंड में 40 लाख रुपए की लागत से सीसी स्लैब, 32 लाख की लागत से रैन बसेरा 15 लाख की लागत से सुलभ शौचालय बनाए गए थे।
लेकिन अब निर्माण कार्य रुक जाने की वजह यह पैसा बर्बाद होता हुआ दिख रहा है। इसके साथ ही अब इस स्थल पर लोग अतिक्रमण कर दुकानें लगाने लगे हैं और मवेशियों ने इसे अपनी आरामगाह बना लिया है। लोगों द्वारा यहां पशु बाजार भी लगाया जा रहा है।
पूरे मामले की शिकायत अनूपपुर विधायक और प्रदेश मंत्री बिसाहू लाल सिंह से भी की गई और उन्होंने जल्द से जल्द इस मामले को सुलझाने और इस ओर पहल करने की बात कही है लेकिन लंबे समय से उनकी ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। मामले पर अनूपपुर के एसडीएम कमलेश पुरी का कहना है कि बस स्टैंड के लिए शासकीय भूमि की तलाश की जा रही है और मवेशी बाजार के लिए भी अभी कोई स्थल निर्धारित नहीं है। उसका भी प्रबंध किया जा रहा है।
इस पूरे प्रकरण से यही बात समझ में आती है कि किस तरह प्रशासन द्वारा जल्दबाजी में फैसले कर लिए जाते हैं और देश के करदाताओं का पैसा बिना सोचे समझे निर्माण कार्य में लगा दिया जाता है और बाद में इसका नुकसान उठाना पड़ता है। प्रशासन को जरूरत है कि किसी भी निर्माण कार्य के लिए बहुत सोच समझकर फैसले किए जाने चाहिए।