शहडोल में एक बार फिर से अस्पताल प्रबंधन द्वारा खुले में बायोवेस्ट फेकने का मामला सामने आया है। इस मामले की शिकायत पहले भी एनजीटी द्वारा स्वास्थ्य विभाग को की जा चुकी है किंतु अभी तक इस मामले पर कोई सख्त कार्यवाही नहीं की गई है। अस्पताल से निकलने वाले इस कचरे में इस्तेमाल किये हुए सिरिंज, दवाओं के रैपर व खून से सनी पट्टियां आदि शामिल है। यह बायोवेस्ट सामान्य कूड़े के लिए बनाये गए जमुई स्थित डंपिंग यार्ड में रोज सुबह डाल दिया जा रहा है। जिससे कई तरह की बीमारियों के फैलने का डर बना रहता है।
इस कूड़े में प्लास्टिक को बीनने वाले कबाड़ी बच्चे और बूढ़े रोजाना दिखाई दिए जाते है, साथ ही जानवर भी इस कूड़े में मुंह मारते देखे जाते है, जिससे जानवरों के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी गंभीर बीमारियों के फैलने का डर रहता है। इस बायोवेस्ट से निकली गंध सभी के लिए बहुत हानिकारक होती है। इसलिए इसका समय से उपचार करना बेहद ज़रूरी हो जाता है।
बीते दिनों एनजीटी के स्थानीय मुखिया के जिला चिकित्सालय पहुंचने के बाद अब चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा बायो मेडिकल वेस्ट के निपटाने का नया तरीका निकाला है, नगर पालिका का एक वाहन काली पन्नियों में बंद कचरे को लेने वाहन भेजता है, जिसमें बायो मेडिकल वेस्ट भी रहता है, उसके बाद कचरे की गाड़ी भर जाने पर उसे कचरा डंपिंग यार्ड में खुले में फेंक दिया जाता है।
इस मामले पर जब ग्राम इंदौर, जिला उमरिया के एमपी बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम के तहसील पाली से सवाल किया गया तो उन्होंने इस मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि उनके द्वारा रोजाना 100 किलो का बायोवेस्ट उठाया जा रहा है, और अगर यह बायोवेस्ट बाहर फेकने की बात है तो उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
इस पूरे मामले पर शहडोल जिले की नपाध्यक्ष उर्मिला कटारे ने कहा कि उनके द्वारा ट्रैक्टर ट्रॉली अस्पताल को उपलब्ध नहीं कराई गई है, जिस पर वह जल्द ही सख्त कार्यवाही कर निर्देश देंगी।
उम्मीद है इस मामले पर अब सख्त कार्यवाही की जायगी और अस्पताल प्रबंधन द्वारा खुले में मेडिकल बायोवेस्ट को नहीं फेंका जायगा। इसके लिए कही दूर व खाली जगह पर विशेष रूप से बायोवेस्ट डंप करने के लिए एक डंपिंग यार्ड उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता है।