बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क देशभर में बाघों के आवास के रूप में प्रसिद्ध है और यहां हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। आंकड़ों के अनुसार बांधवगढ़ पार्क से हर साल प्रशासन को 8 से 10 करोड़ रुपए की कमाई होती है लेकिन इसके बावजूद भी बांधवगढ़ नेशनल पार्क का पहुंच मार्ग और आसपास के ग्रामीण इलाके नागरिक सुविधा के लिए जूझ रहे हैं।
यहां न तो अच्छी सड़कें हैं और न ही नालियों की व्यवस्था। यहां तक की बिजली की कटौती और रास्ते में लाइट का इंतजाम न होने से लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। पर्यटकों को पार्क में प्रवेश के लिए कोर में तीन और बफर में भी तीन गेट हैं लेकिन इन सभी मार्गों और आस-पास के गांव में सड़क, बिजली, पानी निकासी जैसी जन सुविधाओं का अभाव है।
बारिश के मौसम में स्थिति और बिगड़ जाती है। सड़कें कीचड़ और पानी से भर जाती हैं और वाहन फंस जाते हैं। सड़कों पर लाइट की व्यवस्था न होने से शाम होते ही सड़कों पर अंधेरा छा जाता है और हादसे होते हैं। सड़कों के दोनों ओर गड्ढों में पर्यटकों के वाहन फंस जाते हैं और लंबा जाम लग जाता है। इतना ही नहीं बल्कि ग्राम पंचायतों में पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं है।
नेशनल पार्क के आसपास बने होटल और रिसॉर्ट से निकलने वाला गंदा पानी भी सड़कों पर फैल कर गंदगी फैलाता है। अधिकांश होटल और बस स्टैंड संचालक गंदा पानी खुले में छोड़ देते हैं जिससे बदबू और गंदगी फैलती है। बांधवगढ़ क्षेत्र में 50 से भी ज्यादा होटल और रिसॉर्ट हैं लेकिन यहां अक्सर बिजली कटौती और कम वोल्टेज की समस्या बनी रहती है, जिस कारण होटल संचालकों को डीजल और केरोसिन से चलने वाले हैवी जनरेटर का सहारा लेना पड़ता है।
इन जनरेटर से निकलने वाला धुआं वन्यजीवों के लिए खतरा बनता जा रहा है। वाइल्डलाइफ इलाके में डीजल वाहन भी पूरी तरह प्रतिबंधित है लेकिन डीजल वाहनों के प्रयोग से भी निकलने वाला धुआं वन्यजीवों के लिए नुकसान दायक बना हुआ है।
इन सारी समस्याओं पर जब प्रशासन से सवाल किया जाता है तो वह रटे रटाए वक्तव्य देकर मामले से खुद को अलग कर लेते हैं। उमरिया कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव से भी जब पूछा गया तो उन्होंने इन समस्याओं पर गौर करने और मेंटेनेंस कराए जाने का आश्वासन दिया है और अधिकारियों को स्थिति में सुधार करने के निर्देश दिए हैं। देखना होगा कि उच्चाधिकारियों के यह आदेश कब तक और कहां तक स्थिति में परिवर्तन ला पाते हैं!