सरकार और प्रशासन द्वारा विकास की नई नई योजनाएं लाई जाती है और बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। लेकिन आज भी देश के कई बच्चे ऐसे हैं जो कुपोषित की श्रेणी में गिने जाते हैं। करोना लाकडाउन के बाद संभाग में कुपोषण के आंकड़े में बढ़ोतरी हुई है।
हाल ही में संभाग में शुरू किये गये संवेदना अभियान के तहत संभाग के तीनों जिला में किशोरी बालिकाओं के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और हीमोग्लोबिन की जांच कराई गई। जांच में 6564 किशोरियों की बीएमआई और 6552 किशोरियों के हिमोग्लोबिन की जांच हुई। जिसमें 243 बालिकाएं गंभीर एनेमिक पाई गई हैं, वही 4554 बालिका है माइल्ड एनेमिक पाई गई। इसी तरह 6564 बालिकाओं में से 2669 बालिकाएं अंडरवेट पाई गई है।
बॉडी मास इंडेक्स एक तरह से कुपोषण को मापने की इकाई है। इसमें शरीर के वजन और लंबाई का अनुपात देखकर स्वास्थ्य की गणना की जाती है। बीएमआई के 18.5 से कम आने पर उसे अंडरवेट माना जाता है। इसी तरह हिमोग्लोबिन की जांच में रक्त में 12 ग्राम से अधिक हीमोग्लोबिन की मात्रा होनी चाहिए।
अगर हीमोग्लोबिन की मात्रा 8 ग्राम से कम है तो गंभीर एनेमिक माना जाता है और यदि 8 ग्राम से 10.9 ग्राम के बीच है तो यह है मीडियम एनेमिक माना जाता है। इस जांच में शहडोल की 4331, उमरिया की 1443 और अनूपपुर की 778 बालिकाएं शामिल थीं जिनके हीमोग्लोबिन की जांच की गई है। संभाग में शहडोल जिले की स्थिति ज्यादा खराब है।
ये आंकड़े भी केबल किशोर बालिकाओं के हैं। इनमें 0 से 12 साल तक के बालिकाएं और बालक सहित किशोर बालक भी जोड़ दिये जाए तो यह आंकड़ा और भी चौकानेवाले हो जाता है। संभाग में संवेदना अभियान के तहत कुपोषण की रोकथाम के लिए प्रशासन द्वारा तरह तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। अधिकारी वर्ग कुपोषित बच्चों की जांच करने और उन्हें पोषण दिलवाने में आनाकानी कर रहा है।
संभाग आयुक्त राजीव शर्मा का कहना है कि संभाग में कुपोषण की चुनौती को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इसमें सुधार के प्रयास के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। इसी कारण संवेदना अभियान के जरिए किशोर बालिकाओं की पोषण संबंधित जांच की गई है और उनमें सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। विभागों और अधिकारियों को कुपोषण को लेकर गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है क्योंकि कुपोषण से ही गंभीर बीमारियां जन्म लेती हैं जरूरत है कि जल्द से जल्द बच्चों को चिन्हित करके उन्हें कुपोषण मुक्त किया जाए।