तरक्की ये आखिर होती क्या है?, आज़ादी के इतने वर्ष बीत जाने के बाद आज भी उन्हीं मुसीबत का सामना लोगों द्वारा किया जा रहा है। प्रशासन द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव को लेकर जो ढिंढोरे पीटे जा रहे हैं, उसका तो अब क्या ही कहना। प्रशासन जिस तरक्की की बात कर रहा है वह निवासियों को कुछ हज़म नही हो रही।
वैसे तो आये दिन कई खबरें विकास कार्य पूर्ण न होने की आती हैं पर आज बात चल रही है जल स्त्रोतों के विकास की, जिसमे लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद यह तालाब किसी भी उपयोग के नहीं हैं। भारी भरकम राशि पूर्व नगर परिषद् अध्यक्ष द्वारा इन जल स्त्रोतों का सौंदर्यीकरण कर जनोपयोगी बनाने के लिए इन घाटों का निर्माण किया था।
यह कोई चौकाने वाली बात नहीं है क्यूंकि नहाना धोना तो दूर की बात है यहाँ तो शौच करने लायक पानी के लिए भी तरसते इन तालाबों में बिलकुल पानी की ही तरह शासकीय धनराशि को बहाया गया जिसमें नगरवासियों के अरमानों भी बहते हुए नज़र आ रहे हैं और ये बात समझने लायक भी है की कोयला खदानों के कारण धनपुरी नगर व क्षेत्र का जल समाप्त हो चूका है, जिस कारण कुएं और तालाबों में पानी नहीं टिकता। बावजूद इसके पूर्व अध्यक्ष ने तालाबों का निर्माण करवाया और लाखौं रुपए की आहुति दे डाली।
हकीकत यह है कि इन निर्माण के नाम पर राशि डकार ली गई है। लोगों ने कहा की इन मुसीबतों के कारण जल स्त्रोत कम होते चले जा रहे हैं। न जल स्त्रोत को बचाने में और न ही उनके संरक्षण पर कोई ध्यान देता हुआ नज़र आ रहा है। आगे ग्रामीणों ने यह भी कहा की नगर परिषद् के पदाधिकारीगण नागरिक सुविधाओं के विस्तार तथा जन समस्याओं के समाधान की डींगे तो हांकते हैं लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है।
एसइसीएल की खदानों के कारण तालाबों का अस्तित्व मिटता ही चला जा रहा है और ऐसे में तालाबों के संरक्षण की कल्पना व्यर्थ नज़र आती है। यदि प्रशासन को तालाब बनाने की इतनी ही पड़ी है तो अनुपयोगी हो चुके तालाबों की भूमि को अन्य उपयोग में लगा कर लोगों को सुविधाएं प्रदान करें। केवल घाट बना कर के सरकारी धन लुटाने मात्र से विकास को गति नहीं मिलेगी।