प्रशासन की लापरवाही फिर एक बार नज़र आने लगी है। जहां एक समय हुआ करता था जब नदी के किनारे कजलियां का मेला भरा करता था, जहां कभी गणेश दुर्गा की प्रतिमाएँ विसर्जित हुआ करती थीं, आज वही नदी की हालत ऐसी है की नदी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती हुई नजर आने लगी है।
एक समय पर धार्मिक स्थल का प्रतीक नरगड़ा नदी आज नाले में तब्दील हो चुकी है और इसका कारण साफ है कि शहर के विकास ने गंदी नालियों के मुह इस नदी में खोल दिए। सोचने वाली बात तो यह है कि जहां एक तरफ सरकार नदियों में पूजन सामग्री विसर्जन करने के लिए प्रतिबंध लगाती है वहीं नगर की इस जीवन रेखा नरगड़ा नदी में शहर भर की गंदगी मिलाई जाती है, और यही कारण है कि आज यह नदी एक गंदे नाले से कम नहीं है।
इस नदी की दुर्गति की वजह से न तो इसमे अब प्रतिमाएँ विसर्जित होतीं हैं और कजलियां विसर्जित करने लायक यह बची भी नहीं है। , इससे यह बात साफ हो जाती है कि इसके चलते लोगों की धार्मिक आस्था भी इस नदी के प्रति कम हो चली है। अब यह कोई आम बात नहीं है, बल्कि गौर फरमाने वाली बात है। कहाँ है वे लोग जो विकास को लेकर बड़े बड़े दावे करते हैं? कहाँ है वे लोग जो चुनाव आते ही आश्वासन के पूल बाधने में सक्षम साबित होते हैं? आखिर कहाँ है वो प्रशासन जो प्रदेश की इस व्यवस्था पर गौर नहीं फरमाना चाह रही?
आजादी का अमृत महोत्सव हुआ, जिसमे विकास का आश्वासन लोगों को नगर परिषद धनपुरी द्वारा दिया गया, तबसे लेकर अब तक आखिर कितना विकास हुआ है? कितनी समस्याओं का निराकरण हुआ है? क्या लोगों का जीवन स्तर सुधरा? ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जहां विकास हुआ? अब जरूरत है तो परिषद को नरगड़ा नदी के मौजूद हालात पर नजर डालने की। इस नदी में बहाए जाने वाली गंदगी के कारण आम निस्तार तो बंद हुआ ही है साथ ही साथ पशु पक्षियों के जीवन में भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
अब नगर परिषद और पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी व कर्मचारी की चुप्पी यहाँ काम नहीं करने वाली, क्यूंकि अब इसके कारण धनपुरी नगर के वासियों के स्वास्थ पर विपरीत असर पड़ने लगा है।