यूं तो प्रधान मंत्री अपने हर सम्बोधन में स्वच्छता की बात करते रहते हैं लेकिन जब प्रदेश के कोतमा क्षेत्र पर नजर पड़ती है तो जमीनी हकीकत पता लगती है। स्वच्छ भारत का सपना अब महज सपना बनके रह गया है। दुर्दशा का तो क्या ही कहना, अब स्वच्छ भारत अभियान मात्र दीवारों में लिखा मिलता है। नगर पालिका कोतमा में 15 वार्ड हैं लेकिन प्रशासन इतनी गहरी नींद में सोया है कि न इन्हे इन दुर्दशाओं की सुध है और न लोगों को हो रही मुसीबतों की।
कहने को तो नगर पालिका में 100 से अधिक सफाई कर्मचारी नियुक्त हैं और उनके लिए स्पेशली दो सुपरवाइजर भी रखे गए हैं जो काम सही से हो रहा है या नहीं इसकी देख रेख करतेे हैं , लेकिन यह सब महज कागजों तक ही सीमित रह गया है। इन सुपरवाइजर के रोल की यदि बात करें तो वह केवल इतनी होती है कि सबेरे सभी कर्मचारियों की हाजरी लगा दी जाती है, और फिर उन्हे कोई मतलब नही है कि आखिर जहां सफाई कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई है वहाँ सफाई हो भी रही है या नहीं। गौरतलब है कि इन सुपरवाइजर को इन कर्मचारियों की तरफ देखने की फुरसत भी नही मिलती जिसके लिए इनकी नियुक्ति की गई है।
नगर के मेन मार्केट में दिखावे के लिए दिन रात सफाई की व्यवस्ता की गई है लेकिन बात जब एक से सात वार्डों की की जाए तो इनकी व्यवस्था तो सही मायने में भगवान भरोसे है। हर जगह कचरे के पहाड़ नजर आते हैं, सड़कों के दोनों तरफ बड़ी बड़ी झाड़ियाँ निकल आई हैं, नालियाँ अलग गंदी पड़ी हैं, इसमे से पानी बह बह कर सड़कों पर आता है। अब ऐसी स्थिति में रहवासियों को परेशानियों का सामना करना ही पड़ेगा।
घर घर कचरा संग्रहण करने का कार्य शुरू भी किया गया था साथ ही उन गाड़ियों में गाने भी लगाए गए थे, लेकिन आज यह कार्य भी प्रशासन के सुस्त कामों की वजह से धीमा पड़ गया है, अब लोगों को पता ही नहीं लगता कि कब कचरे की गाड़ी आई और कब गई। इन वार्डों को साफ रखने के लिए प्रति माह लाखों रुपए खर्च भी किए जा रहे हैं लेकिन प्रश्न यह उठता है कि इसके बावजूद वार्डों की स्तिथि ज्यों की त्यों बनी हुई है।