स्वास्थ व्यवस्थाएँ, एक मूलभूत सुविधा, एक नागरिक का मौलिक अधिकार जो किसी भी हालत में एक इंसान को प्राप्त होना ही चाहिए, लेकिन उमरिया जिले के वासियों का दुर्भाग्य इतना खतरनाक है की इसे महज शब्दों में कह पाना संभव नहीं है। उमरिया जिला एक ऐसा जिला है जहां कैबिनेट मंत्री भी हैं सांसद भी हैं, लेकिन फिर भी यदि बात यहाँ के स्वास्थ व्ययवस्था की करें तो एकदम शून्य पाई जाएंगी।
बात इनके दावे की जाए तो, मजाल है की यह पीछे छूट जाएँ लेकिन जब जमीनी हकीकत की बात आती है तो सच्चाई हर ओर नजर आने लगती है। एक अस्पताल का यू एस पी क्या होता है ? एक डॉक्टर? लेकिन यहाँ उनकी कमी तो खेर छोड़ ही दीजिए लेकिन जो हैं वो भी इलाज करने में बहाने बनाते नजर आते हैं। ढेरों उम्मीद लेकर एक पीड़ित मरीज के परिजन जिला अस्पताल में आते हैं लेकिन उनकी आशा, उनकी उम्मीद पर चंद सेकंड में पानी फिर जाता है।
इस जगह को अस्पताल कम और रेफर सेंटेर ज्यादा बोला जाना चाहिए क्यूंकी इलाज कराने की उम्मीद में मरीजों को इस जगह से उस जगह रेफर कर दिया जाता है। और ऐसा भी नहीं है की आए दिन इन पर नजर नहीं रखी जाती, बल्कि जिला के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव द्वारा आए दिन इस अस्पताल का भ्रमण भी किया जाता है लेकिन हालत फिर भी नहीं सुधीरे है। न मौजूद स्टाफ में अब डर नाम की कोई चीज रह गई है और नाही कोई भय, इनकी मनमानियाँ आखिर कब तक चलती रहेगी, विषय चिंताजनक है।
एक ऐसा मामला इसी अस्पताल से सामने निकाल कर के आया है जहां पीड़ितों के साथ साथ, दंश परिजन भी उठाते हैं। यहाँ के अस्पताल में डॉक्टरों को केवल रिफर कराना बेहद पसंद है।
कहने को तो 32 वार्ड बॉय हैं लेकिन इनके होने न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता, यह काम तो मरीज के परिजन ही करते हुए नजर आते हैं। यह वार्ड बॉय भी अपना काम करने के बजाय दूसरा ही काम करते हुए नजर आते हैं। मरीज को इस्तेमाल होने वाली छोटी-छोटी वस्तुओं को लाने के लिए एक गरीब परिवार आज मजबूर है, इस अस्पताल में मरीज भगवान भरोसे ही अपना इलाज करवाते हैं।
उम्मीद यही होगी की प्रशासन अपनी नींद से जाग जाए और लोगों को हो रही मुसीबतों को समझे और निराकरण हेतु कुछ आवश्यक कदम उठाए।