कुछ दिन पहले ही दीपावली का त्योहार मनाया गया जिससे मिठाइयों की बिक्री भी धड़ल्ले से हुई। कहने को तो दूध और खोवे से बनी शुद्ध मिठाइयां खाने के नाम पर लोगों की भारी जेब हल्की हुई लेकिन जिस प्रकार से मिठाइयों की बिक्री की गई है, उतना तो इस क्षेत्र व जिले में दूध का उत्पादन है ही नहीं।
यदि इतना उत्पादन है ही नहीं तो आखिर कहाँ से इतना सारा दूध और खोवा आता है? इस सवाल का जवाब खोजा जाए तो एक ही बात बार बार लगातार, सामने निकाल करके आती है, वो है सफेद दूध का काल कारोबार। इन कारोबारियों को अब किसी का डर भी नहीं है और हो भी क्यूँ , आखिर नगर प्रशासन व खाद्य और औषधि विभाग का कोई अंकुश नहीं रह गया है।
सूरज निकलने से पहले दूध बेचने वाले डिपो में दूध भर देते हैं और फिर नगर की गलियों व बाजारों में घूमते रहते हैं, इनमे से कुछ हैं जो वास्तव में असली दूध बेचते हैं लेकिन कुछ और ज्यादातर कारोबारी मिलावटी नकली दूध बेचकर न सिर्फ लोगों के स्वास्थ के साथ खेल रहे हैं बल्कि इसके पीछे खासी मोटी रकम कमा रहे हैं।
नकली और मिलावटी दूध व खोये का उत्पादन का काम ज़ोरों पर है। त्योहारों के सीजन में लाखों की मिठाइयां बिकती हैं जिसमे से अधिक मिठाइयां खोवे से बनी हुई होती है। इन कारोबारियों द्वारा बड़े पैमाने में मिठाइयों का कारोबार तो किया जाता है लेकिन जब इनसे यह पूछा जाता है कि इन मिठाइयों की शुद्धता की क्या गारंटी है तो इसके जवाब में केवल चुप्पी मिलती है बल्कि वजह भी स्पष्ट हो जाती है कि स्थानीय स्तर पर आने वाले दूध और खोये की शुद्धता की कोई गारंटी नहीं है। एक नहीं बल्कि हर स्तर पर मिलावट और नकली सामग्री का कारोबार काफी प्रचलित है जिसे रोक पाने के लिए प्रशासन किसी भी तौर पर सक्षम साबित नहीं हो पाई है।