मध्यप्रदेश में कुछ लोगों द्वारा सरकार को पागल बनाकर लाखों रूपए का फर्जीवाड़ा करने का मामला सामने आया है। प्रदेश के सीहोर, भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और भिंड में फर्जी आयुष्मान कार्ड बनाकर, मुफ्त में लाखों रूपए का इलाज कराने का मामला सामने आया है।
दरअसल, गरीब लोगों को मुफ्त चिकित्सकीय इलाज देने के लिए आयुष्मान भारत योजना के तहत सरकार ने यह मुफ्त इलाज की योजना शुरू की थी ताकि गरीबों को महंगे इलाज के दौरान आर्थिक मदद मिल सके। किंतु, कुछ लोगों ने इसका दुरूपयोग करना शुरू कर दिया है। जो लोग अस्पतालों के इलाज का खर्चा उठाने योग्य है, और महंगे व अच्छे इलाज का खर्चा उठाने में सक्षम है उन्होंने, इन गरीब लोगों का हक मारा है। और इनके लिए बनाए जाने वाले आयुष्मान कार्ड अपने लिए बनवाकर उनका इस्तेमाल किया है।
शुरुआती जांच में प्रदेश के 6 जिलों से 26 फर्ज़ी आयुष्मान कार्ड मिले हैं और इन लोगों द्वारा अब तक लगभग 20 लाख रूपए तक का मुफ्त इलाज कराया गया। सरकार ने ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही शुरू कर दी है, और कई जिलों से ऐसे लोगों पर एफआईआर भी दर्ज की गई है।
पर गौरतलब है कि इन लोगों द्वारा ये आयुष्मान कार्ड बनवाए ही कैसे गए? क्या प्रशासन के अधिकारी कार्ड बनाने से पहले व्यक्ति की आर्थिक स्थिति की जांच नहीं करते? क्या वह ये बात सुनिश्चित नहीं करते कि जो व्यक्ति यह कार्ड बनवा रहा है, क्या वो इसके लिए पात्र है? इन लोगों से पहले सवाल तो प्रशासन के उन अधिकारियों पर उठना चाहिए जिनकी कृपा से यह अनुचित काम संभव हो पाया है।
20 लाख रूपए की राशि कोई छोटी राशि नहीं है। इतना बड़ा अपराध करने से पहले क्यों समय पर आयुष्मान कार्ड धारकों की जांच नहीं की गई। समय-समय पर क्यों इस बात को सुनिश्चित नहीं किया जाता कि सरकार द्वारा इस योजना का लाभ उन्हें मिल भी रहा है, जो इस योजना के असली हक़दार है?
सरकार द्वारा इस योजना का शुरू होना वाकई एक सराहनीय कदम है। किंतु, किसी भी योजना के पूर्णतः व पारदर्शी संचालन होना भी बेहद ज़रूरी। अब सरकार द्वारा इन सभी धोखेबाज़ लोगों का पता लगाया जा रहा है और इनपर कड़ी कानून कार्यवाही भी जारी है। उम्मीद है, कि इनको इनके अपराध की कड़ी सज़ा दी जायगी, साथ ही इस योजना के असल पात्र हितग्राहियों को अपना हक मिलेगा।