मनचाही, मनमानी, न डर, न भय। ऐसा कुछ हाल है खनिज माफियाओं का क्यूंकी आजकल उनकी पहली पसंद बसाढ़ नदी बनी हुई है। एक ओर जहां स्थानीय पंचायत की रेत की खपत यहीं से होती है तो वहीं दूसरी ओर आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी रेत की खपत इसी नदी से हो रही है। प्रशासन द्वारा जिन कंपनियों को रेत का वैध ठेका दिया हुआ है, इन क्षेत्रों में उन वैध खदानों की दूरी के कारण यहाँ पहुंचते-पहुंचते रेत की कीमत अधिक हो जाती है वहीं स्थानीय स्तर पर निकाली गई रेत की लागत व मूल्य कम होने के कारण बीते कुछ सप्ताहों से यहाँ रेत का अवैध उत्खनन और बिक्री उफान पर हो रहा है।
जहां से रेत निकाली जा रही है वहाँ से भले ही मुख्यालय और सोहागपुर थाना महज 20 से 25 मिनट की दूरी पर है लेकिन फिर भी यह क्षेत्र उमरिया में आता है, जिससे इसका जिम्मा उमरिया खनिज व राजस्व विभाग को सौंपा गया, हालाकी जिस स्थान से रेत निकाली जा रही है, वहाँ से घुनघुटी चौकी की दूरी महज 12 से 15 किलोमीटर है, इस संदर्भ में उमरिया मुख्यालय स्तिथ खनिज विभाग को अवैध खनन की जानकारी तक नही है।
बसाढ़ नदी से ट्रैक्टरों के माध्यम से अवैध रेत का उत्खनन कर परिवहन का कार्य बेखौफ कर रहे हैं। अब इनके द्वारा गुंडागर्दी, दादागिरी जैसे कार्य भी किए जाने लगे हैं। इनके खिलाफ होनी तो चाहिए कड़ी कार्यवाही लेकिन प्रशासन मौन बैठी है, प्रशासन की उदासीनता के कारण रेत माफियाओं ने नदी का पूरा का पूरा स्वरूप बिगाड़ के रख दिया है, लेकिन जिनकी जिम्मेदारी है उनकी नज़र इस ओर पढ़ ही नही रही। इनके द्वारा भ्रमण के नाम पर हर महीने विभाग द्वारा हजारों रुपए का डीजल फूँक दिया जाता है, लेकिन रेत की यह चोरी अब उनकी कार्य प्रणाली पर बड़ा सवाल उठा रही है।
बसाढ़ नदी से निकलने वाली रेत जहाँ एक ओर खनिज विभाग को कटघरे में खड़ा कर रही है, तो वहीं पंचायत के होने वाले निर्माण कार्यों में चोरी की रेत खप रही है, और चौकाने वाली बात तो यह है की खनिज विभाग द्वारा न तो खनिज माफियाओं पर कार्यवाही की गई और नाही कभी पंचायतों में लगने वाली रेत की रॉयलिटी की ही जांच की। चर्चा है की अगर इस मामले में पंचायतों से रॉयलिटी की मांग कर ली जाए तो, रेत के अवैध कारोबार से खुलासा हो सकता है। अब देखने वाली बात यह होगी की आखिर कब तक प्रशासन चुपी बनाए रखते हैं।