हिंदुस्तान त्योहारों का देश है,जितने उत्साह से यहां पर उत्सव मनाए जाते हैं, लोग जिस भावना से इनमें शामिल होते हैं, वैसा किसी और देश में देखने नहीं मिलता। बात हो रही है देश में चल रहे चुनावी महा उत्सव की।

चुनावी महासमर 2022
देश के 5 राज्यों में आगामी फरवरी महीने से चुनाव होने जा रहे हैं। चुनाव आयोग तारीखों की घोषणा कर चुका है। स्वाभाविक है कि राजनीतिक सरगर्मी काफी तेज हो गई है। चुनावी राज्यों में न्यूज़ चैनल्स और पत्रकार जनता का मूड जानने के लिए लगातार बने हुए हैं। ऐसे में सबसे ज्यादा चर्चा है एक ऐसे राज्य की जहां पर पूरे भारत की लगभग 17% आबादी रहती है। राज्य का नाम है उत्तर प्रदेश जो कि भारतीय राजनीति में बारहो महीने चर्चा में बना रहता है। अब चूंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आ गए हैं, राजनीतिक पार्टियों ने एक-दूसरे पर हमले तेज कर दिये हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के चुनावी समीकरण पर बड़ा बयान दिया है। लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश का चुनाव 80 बनाम 20 फ़ीसदी का होने वाला है। जो लोग सुशासन और विकास का साथ देते हैं, वो 80 फीसदी भाजपा के साथ है।

विवाद इस बात पर छिड़ गया है की योगी आदित्यनाथ ने जो आंकड़े बताए हैं, वह मोटे तौर पर यूपी में हिंदुओं और मुसलमानों के अनुपात से मेल खाते है।

हालांकि CM ने अपने बयान में यह भी कहा कि जो लोग किसान विरोधी है, विकास विरोधी है। गुंडों माफियाओं का साथ देते हैं, वो 20 फीसदी विपक्ष के साथ हैं। इसके बाद राजनीतिक पार्टियां जुबानी जंग में कूद पड़ी। लोगों ने सोशल मीडिया पर बीजेपी पर कटाक्ष किए। समाजवादी पार्टी ने समाजवाद और अंबेडकरवाद का मेल 85 फीसदी बताते हुए बीजेपी पर पलटवार किया। कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने इस बयान को सांप्रदायिक बताते हुए चुनाव आयोग से रिप्रेजेंटेशन आफ पीपल्स एक्ट के तहत कार्यवाही करने की मांग की।

इतना बवाल छिडने के बाद सोमवार को योगी आदित्यनाथ ने अपने बयान पर सफाई दी। उन्होंने कहा,” यह चुनाव 80 बनाम 20 फीसदी जायेगा। रिजल्ट 10 मार्च को आने दीजिए। एक तरफ बीजेपी होगी, 3 चौथाई सीटों के साथ सरकार बना रही होगी। दूसरी तरफ कांग्रेस,सपा, बसपा जैसे दल होंगे जो 20 प्रतिशत की लड़ाई के लिए माथापच्ची करेंगे। उन्होंने बीजेपी द्वारा 300 से अधिक सीटें जीतने का दावा किया।
अब उनके कहने का मतलब तो खुद मुख्यमंत्री ही जाने। लेकिन सवाल है कि जब बीजेपी और उसका शीर्ष नेतृत्व सत्ता पर काबिज होकर सबका साथ सबका विकास जैसे नारे बुलंद करता है तो फिर चुनावों के लिए ऐसे बयान देना और फिर उन पर सफाई देना इसके उलट तस्वीर बयां करता है।