भाजपा से स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा देने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में मौर्य वोटों के समीकरण को लेकर कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं। अभी तक केशव प्रसाद मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ होने पर बीजेपी को इस तरफ सोचना नहीं था लेकिन स्वामी के जाने के बाद अब दारोमदार सिर्फ केशव पर आ गया है। अब बड़ा प्रश्न यह उठ कर के आता है की मौर्य की पकड़ भाजपा को नुकसान कैसे पहुंचाएगी?
स्वामी प्रसाद मौर्य की मौर्य जाति समूह पर पकड़ मजबूत है। बसपा में भी इसी वजह से वह मजबूत स्तंभ थे। बसपा छोड़ी तो अपने कोर वोटर्स को भाजपा में ले आए थे। मौर्य समाज का एक बड़ा तबका स्वामी प्रसाद मौर्य का माना जाता है। इस समाज के वोटों की ताकत इसी बात से समझी जा सकती है कि राज्य विधानसभा में इस जाति समूह के 18 विधायक हैं।
अब बता दें की यूपी चुनाव से ठीक पहले स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफ के बाद तीन और विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है। कानपुर देहात से भाजपा विधायक भगवती सिंह सागर और बांदा के तिंदवारी से भाजपा विधायक ब्रजेश प्रजापति ने भी भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। शाहजहांपुर से तिलहर विधायक रोशनलाल वर्मा भी भाजपा छोड़कर साइकिल पर सवार हो गए हैं। बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे की खबर के बाद भगवती सिंह सागर, ब्रजेश प्रजापति समेत कई विधायकों ने स्वामी प्रसाद मौर्य के आवास पर डेरा जमा रखा है। रोशनलाल वर्मा ने समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली है। उधर अन्य विधायकों के भी समाजवादी पार्टी के साथ जाने की चर्चा चल रही है।
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शुरू हुए इस्तीफे का दौर अब बढ़ता जा रहा है। स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद तीन और विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद कई और विधायकों के नाम चर्चा में आए हैं जो पार्टी छोड़ सकते हैं।जानकारी के अनुसार भाजपा के चार और ऐसे विधायक हैं जो पार्टी छोड़ सकते हैं। इनमें ममतेश शाक्य, विनय शाक्य, धर्मेन्द्र शाक्य ओर नीरज मौर्य का नाम चल रहा है। हालांकि अभी इन नामों पर पूरी तरह पुष्टि नहीं हो पाई है।
मौर्य ने इस्तीफ़े का एलान करने के बाद मीडिया के सवालों का जवाब भी दिया. मौर्य ने दावा किया कि उन्होंने पार्टी के ‘बड़े नेताओं के सामने भी ये मुद्दे उठाए थे लेकिन कुछ हुआ नहीं.।मौर्य ने कहा, “उचित प्लेटफॉर्म पर बात उठाई. बात तो सुनी गई लेकिन कुछ हुआ नहीं.”। मौर्य साल 2016 में बहुजन समाज पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. वो उत्तर प्रदेश में पांच बार विधायक चुने जा चुके हैं।
इसी बीच अखिलेश यादव ने ट्विटर पर लिखा, ” सामाजिक न्याय और समता-समानता की लड़ाई लड़ने वाले लोकप्रिय नेता श्री स्वामी प्रसाद मौर्या जी एवं उनके साथ आने वाले अन्य सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का सपा में ससम्मान हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन! ”
आइए जानते हैं कि देश का राजनीतिक भविष्य तय करने वाले उत्तर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचाने वाले ये नेता आखिर कौन हैं? स्वामी प्रसाद मौर्य का 2 जनवरी 1954 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्म हुआ। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से लॉ में स्नातक और एमए की डिग्री ली। मौर्य ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में 1980 में सक्रिय रूप से कदम रखा. वह पहले इलाहाबाद युवा लोकदल की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य बने और इसके बाद उन्होंने कार्यसमिति में महामंत्री का पद संभाला। जनवरी 2008 में उन्हें बसपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।
उन्होंने अगस्त 2016 में बसपा से बगावत करके पार्टी छोड़ दी. उन्होंने पार्टी पर पैसे लेकर टिकट बांटने का बड़ा आरोप लगाया था जिसका खंडन करने खुद मायावती आगे आईं थीं. इस बात से ही पता चलता है कि स्वामी प्रसाद के पास कितना बड़ा वोट बैंक है. पार्टी छोड़ने के बाद उन्होंने अपना दल बनाने की कोशिश के साथ ही कई दलों से संपर्क साधा. आखिरकार उन्हें बीजेपी का साथ मिल गया. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ा और जीत के बाद सरकार में कैबिनेट मंत्री बने और तब से श्रम मंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे थे।
हम आपके संज्ञान में लाते हैं 2019 का वो वर्ष जब बदायूं लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी कि स्वामी प्रसाद मौर्य बदायूं में रहकर चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं और इसी शिकायत के आधार पर आयोग की टीम ने छापेमारी भी की थी। अब देखने वाली बात यह होगी की किस ओर बढ़ता है यूपी चुनाव का रुख।