रोटी कपड़ा और मकान। इन तीन चीजों को मानव जीवन की बुनियादी जरूरत माना जाता है। हर नागरिक सरकार से ज्यादा नहीं, तो कम से कम इन तीन चीजों की सुविधा उपलब्ध कराने की उम्मीद रखता है। सरकार मामूली जरूरतों को पूरा करने में तो नाकाम रहीं, देश के लोग रोटी और मकान पाने भर को जूझते रहे, उस पर तो कोई सुनियोजित व्यवस्था नहीं की जाती, कोई योजना प्रभावी नहीं दिखती। हाँ, लोगों को क्या करना चाहिए,क्या नहीं! क्या कपड़े पहनना चाहिए, क्या नहीं! इस मसले पर बयानबाजी करने, तरह-तरह के आदेश जारी करने सरकार के विधायक ,नेता, कर्मचारी तक हमेशा अव्वल रहते हैं।
कहीं पर महिलाओं के जींस पहनने पर बैन लगा दिया जाता है, कहीं साड़ी पहनने पर रेस्टोरेंट में एंट्री नहीं दी जाती तो कहीं लोगों के पहनावे को देखकर उनकी बौद्धिक क्षमता और विचारधारा का आकलन किया जाता है। कपड़ों पर पाबंदी कसने के कई मामलो में कर्नाटक में लड़कियों को हिजाब पहनकर कॉलेज जाने से रोका जा रहा है।
ताजा मामला कर्नाटक में कुंडापुर स्थित एक सरकारी कॉलेज का है। यहां पर लड़कियों को हिजाब पहनकर आने से मना किया गया लेकिन लड़कियों ने इसे अपना अधिकार बताते हुए हिजाब पहनकर कॉलेज जाना तय किया। इसके बाद बड़ी संख्या में कॉलेज के हिंदू छात्र भगवा गमछा डाल कर कॉलेज पहुंच गए और कॉलेज प्रशासन से मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनकर आने पर आपत्ति जताई। प्रशासन ने दबाव में आकर हिजाब पर बैन लगा दिया है। कॉलेज के प्रिंसिपल खुद मुख्य दरवाजे पर हिजाब पहनकर कॉलेज आई लड़कियों को अंदर आने से रोक रहे हैं।
यहां के विधायक और मंत्री भी कॉलेज के समर्थन में बयान दे रहे हैं। जहां उडुपी के विधायक रघुपति भट्ट ने कहा कि हिजाब पहनकर छात्राओं को कॉलेज नहीं आना चाहिए। वहीं कर्नाटक के गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र कह रहे हैं कि स्कूलों में न तो हिजाब पहनकर आ सकते हैं और ना ही भगवा गमछा पहन कर। किसी को अपने धर्म का पालन करना है तो उसे स्कूल नहीं आना चाहिए। 1 जनवरी 2022 से शुरू हुआ उडुपी के प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज से शुरू हुआ यह विवाद धीरे-धीरे पूरे कर्नाटक में फैल रहा है। 1 जनवरी से 6 मुस्लिम छात्राओं को कक्षा में प्रवेश नहीं दिया जा रहा। यह छात्राएं लगातार हिजाब पहनकर कॉलेज जा रही हैं और बाहर ही धरने पर बैठ रही है।
एक छात्रा रेशम फारुख ने कर्नाटक हाईकोर्ट में इस बाबत एक याचिका दायर की है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 और 25 हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार देता है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति को उसके धार्मिक कपड़े पहनने से रोका नहीं जा सकता। छात्रा इसी अनुच्छेद को आधार मानकर हाईकोर्ट से अपने पक्ष में सुनवाई करते हुए हिजाब पहनने की अनुमति देने की मांग कर रही है। छात्राओं का कहना है कि उन्होंने किसी प्राइवेट कॉलेज में ना जाकर सरकारी कॉलेज में दाखिला इसीलिए लिया है कि उन्हें अपने धार्मिक परंपराओं का पालन करने से रोका नहीं जाएगा लेकिन परीक्षाओं के ठीक पहले चालू सत्र में उन पर अचानक ऐसी पाबंदियां लगाई जा रही है।
सरकारों से इस मामले पर उचित न्याय की उम्मीद अब ना के बराबर लगती है। कर्नाटक हाईकोर्ट से छात्राएं उम्मीद लगाए बैठी है। किसी को क्या पहनना चाहिए,क्या नहीं, इस पर अंतिम फैसला अदालत सुनाएगी! सुनने में अजीब लगता है लेकिन देश में अदालत का फैसला सर्वमान्य है उससे उचित न्याय की उम्मीद की जा रही है।