मस्तमौला, खुशमिजाज, दिलदार, शानदार आवाज के धनी भारत के ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह । आज तारीख है 8 फरवरी 2022 । इसी तारीख को सन 1941 में राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्मे जगजीत सिंह ने अपनी आवाज के दम पर भारत के कोने-कोने में गजलों को पहचान दिलाई।
जगजीत सिंह का रुझान बचपन से ही संगीत की तरफ था। शुरुआती शिक्षा के बाद जगजीत सिंह पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। उन्होंने डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और उसके बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। वह गायन के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना चाहते थे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1961 में ऑल इंडिया रेडियो में गाने से शुरू की। पंडित छगन लाल शर्मा और उस्ताद जमाल खान से उन्होंने संगीत की शुरुआती शिक्षा ली। 1965 में घर वालों को बिना बताए वे मुंबई चले गए।
ना तो माया नगरी मुंबई तक पहुंचना आसान होता है, ना ही यहां टिक पाना। जगजीत सिंह को मुंबई में काफी संघर्ष करना पड़ा। उनके पास खाने तक के पैसे नहीं होते थे। शादी और पार्टियों में गाने गाकर उन्होंने अपना खर्चा चलाया, विज्ञापन जिंगल गाए। धीरे-धीरे उन्हें उन्होंने इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई। प्रेम गीत, अर्थ, जिस्म,तुम बिन, वीर ज़ारा, जॉगर्स पार्क जैसी कई फिल्मों में उन्होंने अपनी गजले गाई ।
1967 मे उनकी मुलाकात ग़ज़ल गायक चित्रा दत्ता से हुई। समय के साथ धीरे-धीरे वे एक-दूसरे को पसंद करने लगे।लेकिन चित्रा पहले से शादीशुदा थी। अपनी बात साफ तौर पर कहने और कुछ ठान लेने पर उसे पूरा करने के लिए मशहूर जगजीत सिंह ने चित्रा के पति से ही उनका हाथ मांग लिया। अंततः 1969 में दोनों ने शादी कर ली। दोनों ने साथ में पहला एल्बम द अनफॉरगेटेबल किया, जिसने भारत में धूम मचा दी। इसके बाद दोनों साथ में गाने लगे। उन्हे कपल स्टार कहा जाने लगा। 1980 में आया एल्बम ‘वो कागज की कश्ती’, फिर आज मुझे, रिश्ता ये कैसा है, जिंदगी रोज नए जैसे गाने लिए यह एल्बम बेस्ट सेलिंग एल्बम बन गया था।
सब कुछ अच्छा चल रहा था। जगजीत सिंह और चित्रा सिंह देशभर में छाए हुए थे, लेकिन अचानक सड़क दुर्घटना में उनके 20 वर्षीय बेटे विवेक की मौत हो गई। दोनों को बहुत बड़ा सदमा लगा। करीब 1 साल तक जगजीत सिंह ने गाना नहीं गाया और चित्रा ने उसके बाद आजीवन स्टेज पर परफॉर्मेंस नहीं दी।
2003 में भारत सरकार ने उन्हे पद्म भूषण से सम्मानित किया, मध्य प्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया और राजस्थान सरकार ने उन्हें मरणोपरांत राजस्थान रत्न से नवाजा। 10 अक्टूबर 1911 को मुंबई के लीलावती अस्पताल में जगजीत सिंह का निधन हो गया।
झुकी झुकी सी नजर बेकरार है कि नहीं, होश वालों को खबर क्या, होठों से छू लो तुम, सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब , मेरे जैसे बन जाओगे और कितनी ही ऐसी ग़ज़ले हैं जो सीधे रूह को छूती है। उनकी आवाज सुनकर, उनके शोज़ की रिकॉर्डिंग देखकर ही हम जान सकते हैं कि वे कितने ऊँचे दर्जे के कलाकार थे। क्या सुनहरा उनका दौर होगा, क्या खुश नसीब वह लोग होंगे जिन्होंने उन्हें सामने से सुना होगा।भारतीय संगीत में उनका योगदान अमिट, अतुलनीय, अमर है।