डॉक्टरी पढ़ रहे हिंदी भाषी छात्रों को बड़ी सौगात देते हुए देश में पहली बार मेडिकल हिंदी में पढ़ाए जाने की शुरुआत की जा रही है। मध्य प्रदेश के गांधी चिकित्सा महाविद्यालय से इसकी शुरुआत होगी।
गौरतलब है कि पिछले साल सितंबर में मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने घोषणा की थी कि प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा के छात्रों को हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पढ़ाई करने के विकल्प दिये जाएंगे। साथ ही पढ़ाई का मॉडुल तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाने की बात कही थी। इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी गणतंत्र दिवस पर अपने संबोधन में प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा का पाठ्यक्रम हिंदी में किए जाने की घोषणा की थी। अब यह घोषणा अमल में आती दिख रही है।
चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मंगलवार को इसके आदेश जारी किए हैं। शुरुआत में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के तीन विषय एनाटामी, फिजियोलॉजी और बायोकेमेस्ट्री में यह प्रयोग किया जा रहा है। पहले चरण में मेडिकल के पाठ्यक्रम को पढ़ाते समय शिक्षकों द्वारा हिंदी भाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाएगा। हिंदी भाषी छात्रों का 2 महीने अंग्रेजी माध्यम से एवं 2 महीने हिंदी माध्यम से पढ़ाकर आकलन किया जाएगा।
चूंकि नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) हिंदी में पाठ्य पुस्तकों की अनुमति नहीं देता है, इसलिए दूसरे चरण में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के तीन विषयों यानी की एनाटामी, फिजियोलॉजी और बायोकेमेस्ट्री की पूरक किताबें हिंदी भाषा में तैयार की जाएंगी। इसके लिए अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल से मार्गदर्शन लिया जाएगा। इस पूरी योजना को पूरा करने के लिए तीन समितियां बनाई गई है।
देश को आजाद हुए 74 साल हो गए हैं। जहाँ जर्मनी चीन, रूस, फ्रांस, इटली जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई स्थानीय भाषा में ही करवाई जाती है। वहीं भारत में अब तक अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्र जब मेडिकल की पढ़ाई करने कही दाखिला लेते हैं तो उन्हें अंग्रेजी के जटिल शब्दों को पढ़ने और समझने में काफी परेशानी आती है। प्रदेश सरकार की इस पहल से हिंदी पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए डॉक्टर बनने की कठिन राह काफी हद तक आसान होने की संभावना है।