भारतीय जनसंघ के संस्थापक, जाने-माने विचारक, दार्शनिक और साहित्यकार पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज पुण्यतिथि है। इस दिन को भारतीय जनता पार्टी समर्पण दिवस के रूप में मनाती है। आज से भाजपा समर्पण निधि संग्रह अभियान की शुरुआत भी करने जा रही है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा जिले के एक छोटे से गांव नगला चंद्रभान में हुआ। मात्र 7 वर्ष की आयु में उनके माता पिता की मृत्यु हो जाने से उनका बचपन काफी परेशानियों में बीता। सन 1937 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा दी। उसके बाद 1939 में प्रथम श्रेणी में बी ए करने के बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। सक्रिय राजनीति में आगे होने के साथ-साथ उनकी साहित्य में भी बहुत दिलचस्पी थी।हिंदी और अंग्रेजी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते थे। इसी क्रम में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म, साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश की शुरुआत की।
अपने प्रखर विचारों और संगठन चलाने की कुशलता से उन्होंने संघ में जल्द ही खुद को प्रतिष्ठित कर लिया। सन 1955 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक बनाए गए। 1953 से 1967 तक उन्होंने महासचिव रहते हुए जनसंघ के लिए काम किया। भारतीय जनसंघ के 14 वे वार्षिक अधिवेशन के दौरान कालीकट में दिसंबर 1967 में उन्हें जन संघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया।
अध्यक्षता मिलने के कुछ दिन बाद ही 11 फरवरी 1968 को अचानक उनकी मृत्यु की खबर से पूरे देश में सनसनी फैल गई। । मुगलसराय रेलवे यार्ड पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शव मिलने के बाद उनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गई। हत्या की जांच सीबीआई को सौंपी गई। दीनदयाल उपाध्याय की मौत का मुकदमा वाराणसी के विशेष जिला एवं सत्र न्यायालय में चला। मुकदमे में राम अवध और भरत लाल को अभियुक्त बनाया गया जिन्होंने पूछताछ में यह स्वीकार किया कि उन्होंने चोरी का विरोध करने पर दीनदयाल उपाध्याय को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया था। लेकिन पंडित जी के साथ सफर कर रहे एक यात्री एमपी सिंह ने ऐसी किसी घटना के होने से इनकार कर दिया।
अंततः कोर्ट ने फैसला सुनाया- दोनों पक्ष कोर्ट कोई ऐसा बयान पेश नहीं कर पाए जिससे इस मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके। साक्ष्यों के अभाव में दोनों आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया। इसके बाद भी उनकी हत्या की गुत्थी सुलझाने के कई प्रयास किए गए लेकिन आज भी पंडित उपाध्याय की मौत एक रहस्य बनी हुई है।