कुछ लोग होते हैं जो पौधों के मुरझाने से रो पड़ते हैं,कुछ हरे-भरे जंगल उचकाकर बेशर्मी से हंसते हैं। कुछ तकलीफे होती है जो अस्पताल तक जाती है, कुछ मन में ही ठहरी रहती, साथ चिता के धुए में वो आसमान तक जाती हैं। कुछ सपने होते हैं जो नींदों में आया करते हैं,कुछ नींदों को हड़काकर पूरे हो जाया करते हैं। ये कविता मैंने लिखी थी कुछ 2 साल पहले लेकिन आज आपको इसे सुनाने का उद्देश्य है, 21 मार्च यानी आज दुनिया भर में मनाया जा रहा विश्व कविता दिवस।
1999 में यूनेस्को ने इसकी शुरुआत की। हमारे देश में भी कवि, कवयित्रियों और उनकी कविताओं को सम्मान देने उनका समर्थन करने कविता दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन देश के रचनाकारों को, उनकी लेखन कला को आज भी पहचान मिलना बहुत मुश्किल काम है। नये कवियो की बात हटा भी दे तो कई ऐसे हिंदी के प्रतिष्ठित कवि हैं जो गुमनामी में अपनी जिंदगी काट रहे हैं। अपना जीवन बसर करने तक के पैसे नहीं है उनके पास। बड़े-बड़े आयोजन, सम्मान समारोह करने के बजाय कवियों, लेखकों की कला का उन्हे उचित मूल्य दिया जाना ज़रूरी है।