आप लोगों को यह खबर कानों में जरूर ही आ गई होगी की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा दूसरे कार्यकाल की शुरुवात कर ली गई है। और साथ ही में कई नए चेहरे भी सामने नज़र पड़ते हैं, उन्मे एक नाम जो चर्चा का विषय बना हुआ है, वो हैं असीम अरूण, जी हाँ बिल्कुल सही सुना आपने, असीम अरुण पूर्व र्आईपीएस अधिकारी हैं, और माना यह जा रहा है की उनका मंत्री बनना पहले से ही तय माना जा रहा था।
अब थोड़ा बैकग्राउंड ले लिया जाए वर्दी उतार कर खादी पहनने वाले पर तो आपको बता दें की सूबे के तेज-तर्रार आईपीएस अफसर में शुमार और कानपुर के पहले पुलिस कमिश्नर ने अपनी करीब नौ साल की नौकरी और शानदार कॅरियर को अलविदा कहकर भाजपा का दामन थामा। पार्टी ने उन्हें सपा की मजबूत सीट मानी जाने वाली कन्नौज सदर सीट से उम्मीदवार घोषित किया। कांटे के मुकाबले में जीत हासिल करने के बाद वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। उनके चुनाव लड़ने के दौरान ही यह चर्चा रही थी कि भाजपा की दोबारा वापसी हुई तो असीम अरुण का सरकार में अहम जिम्मेदारी मिलेगी। यह चर्चा भी उनकी जीत का रास्ता आसान करने में काफी मददगार साबित हुई। उनके सरल स्वभाव से लोग उनके पास आते थे और डकैत डरकर जिला छोडना पसंद करते थे।
अब इसको करने का क्या कुछ कारण रहा होगा, बीजेपी ऐसे ही कोई चाल तो नही चलेगी न दोस्तों, बीजेपी ने उन्हें बहुत ही सोची समझी रणनीति के तहत पहले पार्टी में शामिल करवाया, फिर चुनाव लड़वाया और अब मंत्री बना दिया। जाटव समाज जो कि मायावती को कोर वोट बैंक माना जाता है, उसमें बीजेपी ने सेंध लगाई और आगे भी ये वोटर पार्टी के साथ और बड़ी संख्या में जुड़े, जाहिर है यही पार्टी की मंशा है और असीम अरुण को मंत्री बनाकर संदेश भी यही दिया गया है।
आपको बताते चलें की, उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्यूरोक्रेट के बहुत कम अधिकारी ऐसे रहे हैं, जो बहुत कम समय में बुलंदियों पर पहुंचे हों. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति में दो ऐसे चेहरे हैं जिनकी ब्यूरोक्रेसी से राजनीति में प्रवेश करते ही किस्मत चमक गई. पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण और राजेश्वर सिंह का नाम राजनीति के चमकते हुए ब्यूरोक्रेसी के सितारों में शामिल है. असीम अरुण कानपुर के पहले पुलिस कमिश्नर के रूप में तैनात रहे. असीम अरुण के बारे में किसी ने भी कयास नहीं लगाया था कि वह आईपीएस की नौकरी को छोड़ कर राजनीति में प्रवेश करने वाले हैं। अब देखने वाली बात यह होगी की आखिर किस तरह भाजपा अपना दम खम पूर्व आईपीएस को लेकर के बनाते हैं।