ग्रामीण युवाओ और शहरी क्षेत्र के युवाओं में लाख अंतर हो, रहन- सहन, बोलचाल भले ही भिन्न हो लेकिन एक चीज है जो दोनों वर्गों को एक दूसरे से जोड़ती हैं, रोजगार की कमी और नौकरी की मांग।
ग्रामीण क्षेत्रों के युवा बड़ी संख्या में नौकरी की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं, लेकिन कोरोना के बाद स्थिति काफी बदल गई है। जिस तरह शहरों से लोगों को गांव की ओर लौटना पड़ा। उसके बाद लोग अपने मूल निवास अपने घर परिवार के साथ रहना पसंद कर रहे हैं। ग्रामीण युवाओं को रोजगार देने के लिए मोदी सरकार ने महत्वकांक्षी दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना की शुरुआत की थी। 4 साल पहले तक इस योजना में 2 लाख 41 हज़ार 509 ग्रामीण युवाओ को ट्रेनिंग दी जा रही थी, लेकिन बीते साल यह संख्या घटकर 23 हज़ार 186 रह गई है जिसका मतलब होता है कि रोजगार के लिए ट्रेनिंग पाने वाले ग्रामीण युवाओं में 90% की भारी गिरावट आई है।
वहीं 4 साल पहले तक 1 लाख 37 हज़ार लोगो को रोजगार मिल रहा था, लेकिन अब यह संख्या घटकर 22 हज़ार रह गई है। ये आंकड़े खुद ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जारी किये है। दरअसल मंत्रालय ने राज्यों से इस संबंध मे आंकड़े मांगे थे। जानकारी आने पर मंत्रालय ने इसे गंभीरता से लिया। राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए। साथ ही रोजगार उपलब्ध कराने विभिन्न कंपनियों के साथ बातचीत और बैठक करने की बात कही है।
साल 2014 में शुरू की गई इस योजना का लक्ष्य 5.5 करोड़ गरीब ग्रामीण युवाओं को रोजगार की ट्रेनिंग देकर नौकरी या खुद का काम शुरू करवाना है। हर साल 2 लाख से ज्यादा युवाओं को रोजगार देना इसका मकसद था लेकिन योजना अपने लक्ष्य से पीछडती दिख रही है। राज्य इसका कारण कोरोना संक्रमन को बता रहे है। राज्यों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के चलते ट्रेनिंग नहीं दी जा सकी।रोजगार मेले नहीं लगाये जा सके,अधिकारी टीकाकरण कार्यक्रमों में व्यस्त रहे, ट्रेनिंग के ऑनलाइन विकल्प कारगर नहीं रहे और जागरूकता अभियानों के रुकने से युवाओं को जानकारी नहीं मिल सकी।
चूंकि काफी दिनों से कोरोना संक्रमण काबू में है, हालत सामान्य है तो रोजगार के मामले में इस तरह की गिरावट नहीं देखी जानी चाहिए। राज्य सरकारें ज्यादा नहीं तो कम से कम अपने पिछले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तक ही पहुँच जाए तो इस मुश्किल दौर में रोजगार पाकर युवाओं को थोड़ी राहत मिले।