पंजाब में इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजे काफी दिलचस्प साबित हो रहे हैं। दरअसल, पिछली बार कांग्रेस ने जितनी सीटों पर जीत हासिल की थी, इस बार उससे ज्यादा सीटों पर आम आदमी पार्टी (आप) कब्जा जमाती दिख रही है। वहीं, कांग्रेस की हालत 1997 के चुनाव जैसी हो रही है, जब उसे पंजाब में सबसे कम 14 सीटें हासिल हुई थीं। आम आदमी पार्टी की इतनी बड़ी जीत ने सभी को चौंका दिया है, क्योंकि पिछले चुनाव में इस पार्टी को महज 20 सीटें ही हासिल हुई थीं और उसके नेताओं पर लगातार बाहरी पार्टी होने का बट्टा लगता रहा था।
आम आदमी पार्टी ने 2017 में पहली बार राज्य में अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया था। काफी मेहनत के बाद आप ने सभी 117 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा। हालांकि, इस पार्टी पर लगातार बाहरी होने का ठप्पा लगता रहा। आप ने 2017 में अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार का एलान भी नहीं किया, जिससे माना जाने लगा था कि पार्टी के पास पंजाब में कोई चेहरा नहीं है, जिसके दम पर वह राज्य का नेतृत्व कर सके।
पंजाब में पिछले 70 सालों का इतिहास देखा जाए तो सामने आता है कि यहां सत्ता पारंपरिक रूप से सिर्फ दो पार्टियों- कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच ही रही है। हालिया राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा के साथ 24 साल (1997-2021) तक गठबंधन धर्म निभाया और इस दौरान तीन बार (1997, 2007 और 2012) सत्ता हासिल की। इसके अलावा 2002 और 2017 में पंजाब का हाथ कांग्रेस के साथ रहा। हालांकि, इस दौरान दोनों ही पार्टियां विपक्ष में रहते हुए सत्तापक्ष पर वही आरोप लगाती रहीं, जिन्हें लेकर वे खुद घिरती थीं।
दो पार्टियों के शासन से ऊबी पंजाब की जनता के रुख को आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पहचान लिया। उन्होंने दिल्ली में अपनी सरकार के कामों को पंजाब में कई बार गिनाया। उन्होंने दिल्ली के गवर्नेंस मॉडल, शिक्षा क्षेत्र में सुधार, स्वास्थ्य और मुफ्त बिजली-पानी के मुद्दे को जमकर जनता के सामने रखा। इसका असर यह हुआ कि पंजाब, जो कि पहले ही बिजली के ऊंचे दामों और शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र के निजीकरण से जूझ रहा था उसने आम आदमी पार्टी को पहला मौका देने का मन बना लिया।
एक परिदृश्य साफ है कि पंजाब में नौकरियों की भारी कमी रही है। राज्य में लगातार गिरती औसत आय भी युवाओं के लिए बड़ी चिंता का विषय रहा है। यह समस्या अकाली दल से लेकर कांग्रेस तक के राज में जस की तस बनी रही। ऐसे में भगवंत मान की ओर से सरकार बनने के बाद सबसे पहले बेरोजगारी की समस्या सुलझाने का वादा आप के लिए युवाओं के वोट खींचने में सबसे अहम साबित हुआ। खुद केजरीवाल ने अपने चुनावी वादों में पंजाब से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने और राज्य को नशामुक्त करने का वादा किया। इन दोनों ही कामों में विपक्ष अब तक सफल नहीं हो पाया। यानी युवाओं के लिए ये वादे आप के चुनाव का मुख्य कारण बने।
शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के लिए किसान आंदोलन काफी नुकसान पहुंचाने वाला रहा। शिअद पर आरोप लगा कि उसने कृषि विधेयकों को रूप देने में भाजपा की मदद की। वहीं कांग्रेस पर इस विधेयक को कानून बनने से न रोक पाने का आरोप लगा। उधर आम आदमी पार्टी की तरफ से दिल्ली में जारी किसान आंदोलन को लगातार समर्थन दिया गया। प्रदर्शनों की वजह से दिल्ली में आ रही समस्याओं के बावजूद केजरीवाल ने इस आंदोलन के विरोध में कुछ नहीं कहा, जबकि इसके उलट पंजाब कांग्रेस ने कई बार किसानों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने और हिंसा करने पर कार्रवाई की चेतावनी तक दे दी।