गुजरात प्रदेश के सूरत शहर के जाने माने हीरा व्यापारी धनेश की 9 वर्षीय बेटी ने तपस्वी जीवन स्वीकारा हैं।
बहुत छोटी उम्र से ही देवांशी का झुकाव आध्यात्मिक जीवन की ओर रहा और आधिकारिक तौर पर दीक्षा ग्रहण करने से पहले ही देवांशी ने संन्यासी जीवन ग्रहण कर लिया था।

गुजरात शहर के एक हीरा व्यापारी की बेटी ने बहुत ही कम उम्र में ही भौतिक जीवन का त्याग कर बुधवार सुबह 6 बजे से उनकी दीक्षा शुरू हो गई थी।
देवांशी ने तपस्वी जीवन स्वीकार कर लिया। 9 वर्षीय देवांशी के पिता सूरत में जाने माने हीरा पॉलिशिंग और एक्सपोर्ट फार्म संघवी एंड सांस के मालिक हैं।
तकरीबन 3 दशक से इस कंपनी का सूरत में बड़ा नाम हैं। हीरा व्यापारी धनेश और एमी संघवी की दो बेटियां हैं, जिनमें से बड़ी बेटी देवांशी ने जैन मुनि आचार्य विजय कीर्तियशसुरी की उपस्थिति में दीक्षा ली।
यहां आयोजन सूरत के वेसु इलाके में 14 जनवरी को हुआ, जहां जैन मुनि के अलावा अन्य सैकड़ों लोग मौजूद रहे।
देवांशी के परिवार के ही स्व. ताराचंद का भी धर्म के श्रेत्र में विशेष स्थान था।
इन्होंने श्री सम्मेदशिखर का भव्य संघ निकाला और आबू की पहाड़ियों के नीचे संघवी भेरूतारक तीर्थ का निर्माण कराया था।
हीरा व्यापारी के पारिवारिक मित्र ने बताया की कम उम्र में ही देवांशी का झुकाव आध्यात्मिक जीवन की ओर चला गया था।
ऐसे में उन्होंने अन्य भिक्षुओं के साथ शामिल होकर करीब 700 किलोमीटर की पैदल यात्रा की थी और आधिकारिक तौर पर दीक्षा ग्रहण करने से पहले ही देवांशी ने संन्यासी जीवन को स्वीकार कर लिया था।
दीक्षा तपस्वी जीवन का प्रतीक हैं, जिसे 9 वर्षीय देवांशी ने स्वीकारा हैं। ऐसे में देवांशी ने सभी भौतिक सुखों और विसलता पूर्ण जीवन का त्याग किया हैं।

देवांशी को 5 भाषाओं का ज्ञान हैं साथ ही वह कई अन्य स्किल्स में भी माहिर हैं।
नीरव शाह ने बताया की आज देवांशी को कार्यक्रम के दौरान दीक्षा दिलाई गई। व्यापारी की दो बेटियां हैं जिनमें देवांशी बड़ी हैं और दूसरी बेटी से चार साल छोटी हैं।
उन्होंने बताया कि बचपन से ही देवांशी का संन्यासी जीवन में झुकाव था, बहुत ही कम उम्र से ही उन्होंने संन्यासी जीवन का पालन करना शुरू कर दिया था।
देवांशी ने 8 साल की उम्र तक 357 दीक्षा दर्शन, 500 किलोमीटर पैदल विहार, तीर्थों की यात्रा व कई जैन ग्रन्थों का वाचन कर तत्व ज्ञान को समझा।
देवांशी के माता पिता ने बताया कि उन्होंने कभी भी टीवी नही देखा, जैन धर्म में प्रतिबंधित चीजों को कभी इस्तमाल नहीं किया, और ना ही कभी भी अक्षर लिखे हुए कपड़े पहने।
देवांशी ने ना सिर्फ धार्मिक शिक्षा में, बल्कि क्विज में गोल्ड मेडल भी अपने नाम किए हैं और भरतनाट्यम और योगा में भी माहिर हैं।
देवांशी के करीबी बताते हैं कि देवांशी जब 25 दिन की थी तब से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया।
4 महीने की थी तब से रात का भोजन त्याग दिया। 8 महीने की थी तो रोज त्रिकाल पूजन की शुरुआत की।
1 साल की हुई तो रोजाना नवकार मंत्र का जाप किया। 2 साल 1 महीने से गुरुओं से धार्मिक शिक्षा लेनी शुरू की और 4 साल 3 महीने से गुरुओं के साथ रहना शुरू कर दिया था।