किसी भी देश की तरक्की की बुनियाद उसकी शिक्षा व्यस्था होती है। अगर शिक्षा व्यस्था सही है तो वो देश हर चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होता है। किसी भी देश को प्रगति की ओर ले जाने के लिए वहां का स्कूल ही नीव होता है।
लेकिन अगर वही सही नहीं होगा तो देश आगे प्रगति कैसे करेगा। आपको बता दें देश के 90 फीसदी सरकारी स्कूलों में बच्चों को ट्रेनिंग देने के लिए कम्प्यूटर नहीं हैं।
इतना ही नहीं, डिजिटल इंडिया बनाने की मुहिम में इंटरनेट भी सबसे बड़ा रोड़ा है क्योंकि देश के 66 फीसदी स्कूल इंटरनेट की पहुंच से दूर हैं। हाल में शिक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी हुई रिपोर्ट में ये आकड़े जारी किए गए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्कूलों में बहुत बदलाव हुए हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि कई जरूरी कदम उठाए जाने बाकी हैं। सरकार डिजिटल इंडिया का दावा करती है लेकिन सरकार शायद ये भूल जाती है कि सिर्फ दावा करने से इंडिया डिजिटल नहीं हो जाएगा।
उसके लिए अच्छी शिक्षा व्यस्था भी जरूरी है। लेकिन हाल ही में जो रिपोर्ट जारी हुई है वो सरकार के सारे दावों की पोल खोलती है। एक तरफ सोचने से कितना अच्छा लगता है न कि एशिया का सबसे अमीर शख्स भारत से है लेकिन यहां के स्कूलों 90% स्कूलों में कम्प्यूटर ही नहीं है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक स्कूलों में लाइब्रेरी, बिजली व्यवस्था और खेल मैदानों की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। देश में कुल 14.9 लाख स्कूल हैं। इन स्कूलों की लाइब्रेरी में कुल 106 करोड़ किताबें हैं। यानी हर स्कूल में करीब 713 किताबे हैं।
सरकारी स्कूलों में खेल मैदानों की बात करें तो इसमें सबसे आगे पंजाब के स्कूल हैं। पंजाब के 97.5% स्कूलों में खेल मैदान हैं। पंजाब के बाद दिल्ली का नम्बर आता है जहां पर 96.5% स्कूलों में खेल मैदान हैं।
तो वहीं महाराष्ट्र में 93.1% , हरियाणा में 89.9% और गुजरात में 88.2% स्कूलों में खेल के मैदान हैं।
रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि सरकारी स्कूलों को डिजिटल इंडिया से जोड़ने के लिए और मेहनत करने की जरूरत है।
देश के मात्र 10 फीसदी सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर लैब हैं। सोचिए आज कल पढ़ाई के लिए इंटरनेट और कम्प्यूटर कितने जरूरी हैं। लेकिन हमारे देश के सरकारी स्कूलों में मात्र 10% स्कूलों में ही कम्प्यूटर लैब हैं।
यानी वहां पर जो भी बच्चे पढ़ते हैं वो कम्प्यूटर की पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। यही नहीं 34 फीसदी स्कूल ही इंटरनेट से जुड़े हुए हैं।
तो वहीं 14.77 लाख में से 13.98 स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट हैं। वहीं, करीब 79 हजार ऐसे स्कूल हैं जहां लड़कियों के लिए टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। ऐसे 50 फीसदी मामले असम, तेलंगाना, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और ओडिशा से जुड़े हुए हैं।
तो वहीं सुविधाओं की कमी के बावजूद 2021-22 में छात्रों के नामांकन में 3.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित जाति के छात्रों की संख्या प्राथमिक से उच्च माध्यमिक तक बढ़ रही है।
इस रिपोर्ट के अनुसार ये आंकड़ा 2020-21 में 4.78 करोड़ से बढ़कर 4.83 करोड़ हो गया है। इसी तरह, 2020-21 और 2021-22 के दौरान कुल अनुसूचित जनजाति के छात्र 2.49 करोड़ से 2.51 करोड़ और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र 11.35 करोड़ से बढ़कर 11.49 करोड़ हो गए हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप UDISE+ रिपोर्ट में अतिरिक्त संकेतक जोड़े हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2.47 मिलियन से अधिक छात्रों को “प्रतिभाशाली बच्चों” के रूप में पहचाना गया है और 980000 को मेंटर प्रदान किए गए हैं।