वर्ल्ड कप हो तो ऐसा जहां पर जैसे ही एक टीम का पलड़ा भारी होता तो दूसरी टीम मैच वापसी करती। जी हां हम बात कर रहे हैं फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले की। जहां पर पेनाल्टी शूटआउट के जरिए मैच का नतीजा निकला।
36 साल के लंबे इंतजार के बाद अर्जेंटीना, आखिरकार वर्ल्ड चैंपियन बन गई। मेसी की कप्तानी में फ्रांस के खिलाफ 120 मिनट तक हुए बेहद रोमांचक मुकाबले में मैच का फैसला पेनेल्टी शूटआउट के जरिए हुआ।
इस पेनेल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना ने फ्रांस को 4-2 से हराया। ये वर्ल्ड कप इतिहास का तीसरा मौका है जब इसका फैसला पेनेल्टी शूट आउट के माध्यम से हुआ।
इस जीत के साथ ही अर्जेंटीना की टीम तीसरी बार वर्ल्ड चैंपियन बनी है और मेसी, डिएगो माराडोना के बाद दूसरे ऐसे कप्तान बने हैं, जिन्होंने अर्जेंटीना को वर्ल्ड कप जिताया। एक्स्ट्रा टाइम में मैच जाने के बावजूद भी स्कोर 3-3 की बराबरी पर था।
कायलियन एमबापे ने पूरे मैच के दौरान अपने दम पर फ्रांस को प्रतियोगिता में बनाए रखा, लेकिन उनकी हैट्रिक काम नहीं आई।
पहले हाफ में अर्जेंटीना ने 2-0 की बढ़त ली थी
इससे पहले, अर्जेंटीना ने लियोनेल मेसी और एंजेल डि मारिया के गोल से पहले हाफ में से 2-0 की बढ़त ले ली थी, लेकिन दूसरे हाफ में 80 मिनट में पेनेल्टी को गोल में बदलकर और फिर 81वें मिनट में गोल दाग कर कायलियन एमबापे ने फ्रांस की मैच में वापसी करा दी।
एक्स्ट्रा टाइम में भी स्कोर बराबरी पर था
90 मिनट के खेल के बाद जब मुकाबला एक्स्ट्रा टाइम पर पहुंचा तो 108वें मिनट में मेसी ने गोल कर अपनी टीम को एक बार फिर बढ़त दिला दिया, लेकिन 118वें मिनट में एमबापे ने मैच में अपनी हैट्रिक पूरी की और फ्रांस को 3-3 की बराबरी पर ला दिया।
जिसके बाद पेनाल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना ने ये विश्व कप अपने नाम कर लिया।।
इस मैच में भी मेस्सी का खूब जादू चला और उन्होंने ये वर्ल्ड कप जीतकर अपना सपना पूरा कर लिया।
मेसी की मां करती थी सफाई का काम
लेकिन ये इतना आसान भी नहीं था जी हां मौजूदा समय में मेसी दुनिया के सबसे महान फुटबॉल खिलाड़ियों में गिने जाते हैं, लेकिन एक समय ऐसा था, जब मेसी ने खुद नहीं सोचा था कि वो फुटबॉल की दुनिया में इतना बड़ा नाम बनेंगे।
साल 1987 में मेसी का जन्म एक मिडल क्लास परिवार में हुआ था। उनके पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे और उनकी मां सफाई का काम करती थीं। मेसी के पिता एक फुटबॉल क्लब में कोच भी थे।
ऐसे में फुटबॉल मेसी के खून में था। सिर्फ 5 साल की उम्र में मेसी एक फुटबॉल क्लब के साथ जुड़ गए और फुटबॉल खेलने लगे।
बचपन में मेसी को हुई थी खतरनाक बीमारी
मेसी फुटबॉल की दुनिया में अपना मन लगा रहे थे, तभी पता चला कि उन्हें ग्रोथ हार्मोने डिफिसिएंसी है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चों का शारीरिक विकास रुक जाता है और वो बौने रह जाते हैं।
मेसी फुटबॉल की दुनिया में अपनी झलक दिखा चुके थे। रिवर प्लेट उन्हें अपने साथ रखने के लिए तैयार था, लेकिन उनके इलाज का खर्च नहीं उठा सकता था। इसी बीच बार्सिलोना ने छोटे फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए टैलेंट हंट प्रोग्राम शुरू किया और मेसी इसमें चुन लिए गए।
इसके बाद बार्सिलोना ने ही मेसी के इलाज का पूरा खर्चा उठाया और उन पर बीमारी का असर नहीं हुआ।
भले ही मेस्सी ने अपने जीवन में खूब संघर्ष किया लेकिन वो आज दुनिया के सबसे महान फुटबॉलर में एक है।
मेस्सी ने अपने हुनर से अपार सफलता हासिल कर ली थी लेकिन वो अब तक एक भी विश्व कप नहीं जीत पाए थे। आपको बता दें मेस्सी का ये आखिरी विश्व कप है और अपने इस आखिरी विश्व कप को उन्होंने यादगार बना दिया है।