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Home इतिहास नामा
Hemu Vikramaditya: दिल्ली की गद्दी के आखिरी हिंदू शासक थे हेमू

Hemu Vikramaditya: दिल्ली की गद्दी के आखिरी हिंदू शासक थे हेमू

by Praveen Mishra
December 12, 2022
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हेमू विक्रमादित्य ऐसे शासक थे जिन्होंने मुगलों को हराकर दिल्ली पर कब्जा किया। भले ही थोड़े समय के लिए ही सही पर भारत विरोधी मुस्लिम शासकों के बीच हिन्दू राज स्थापित हुआ था।

इसका श्रेय इन्हीं सम्राट हेमू को दिया गया। हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले हेमू ने अपने जीवन में कुल 22 जंग जीतीं। यही वजह रही कि इन्हें कुछ इतिहासकारों ने मध्ययुग का समुद्र गुप्त और ‘नेपोलियन’ कहा।


सम्राट हेमू एक कुशल शासक होने के साथ-साथ बेहतरीन योद्धा भी थे। दुश्मनों ने भी उनकी बहादुरी का लोहा माना, लेकिन उन्होंने मुगलों को जो शिकस्त दी उसकी चर्चा सबसे ज्यादा रही।

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दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से हुई हार

एक अच्छे योद्धा के साथ-साथ वो कुशल प्रशासक भी थे। उनके बारे में मशहूर इतिहासकार आर.पी त्रिपाठी अपनी ने किताब ‘राइज़ एंड फॉल ऑफ़ मुग़ल एम्पायर’ में लिखा हैं कि अकबर के हाथ हेमू की हार दुर्भाग्यपूर्ण थी
अगर भाग्य ने उनका साथ दिया होता तो उन्हें ये हार नसीब नहीं हुई होती।


एक और इतिहासकार आरसी मजूमदार शेरशाह पर लिखी पुस्तक के एक अध्याय ‘हेमू- अ फॉरगॉटेन हीरो’ में लिखते हैं, कि पानीपत की लड़ाई में एक दुर्घटना की वजह से हेमू की जीत हार में बदल गई, वरना उन्होंने दिल्ली में मुग़लों की जगह हिंदू राजवंश की नींव रखी होती।

हरियाणा में हुआ था जन्म


आपको बता दें हेमू का जन्म हरियाणा के रेवाड़ी में एक छोटे से गांव कुतबपुर में हुआ था। अकबर की जीवनी ‘अकबरनामा’ में हेमू के लिए तिरस्कार करने वाले शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।

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अकबरनामा में अबुल फजल ने हेमू को एक ऐसा फेरीवाला बताया जो रेवाड़ी की गलियों में नमक बेचा करता था।
तो वहीं उनकी खूबियों पर शेरशाह के बेटे इस्लाम शाह की नजर पड़ी और उन्होंने हेमू को डाक विभाग का प्रमुख बनाया।

लेकिन जब उन्होंने हेमू के युद्ध कौशल को देखा तो उन्हें सेना में अहम स्थान दिया गया। यही नहीं शाही राजवंश के पहले शासक मोहम्मद आदिल शाह ने इन्हें अपने शासनकाल में ‘वकील ए आला’ यानि प्रधानमंत्री का दर्जा दिया।

आदिल को जब इस बात की खबर मिली कि हुमायूं ने वापसी करके दिल्ली के तख्त पर कब्जा कर लिया है तो उन्होंने हेमू ये जिम्मेदारी सौंपी कि मुगलों को भारत से बाहर निकालें।

50 हजार सैनिकों की बनाई सेना

आदिल शाह की तरफ से महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने पर हेमू ने ऐसी सेना बनाई जिसमें 50 हजार सैनिक थे। 10 हजार हाथी और 51 तोपें थीं। इसकी चर्चा चारों तरफ होने लगी।

पहले ही हेमू की बहादुरी के चर्चे थे। फिर सेना को लेकर मुगलों से लड़ने की बात सुनकर कालपी और आगरा के मुगल गवर्नर अब्दुल्लाह उज़बेग ख़ां और सिकंदर खां डर के मारे शहर ही छोड़कर भाग निकले।

महाराजा विक्रमादित्य के पदवी से नवाजा गया

के.के भारद्वाज ने अपनी किताब ‘हेमू नेपोलियन ऑफ़ मीडिवल इंडिया में’ लिखा है कि मुगलिया सल्तनत में दिल्ली के गवर्नर टारडी ख़ां ने हेमू को रोकने की पूरी कोशिश की।

6 अक्तूबर, 1556 को हेमू दिल्ली पहुंचे और उन्होंने तुग़लकाबाद में फौज खड़ी कर दी। अगले दिन मुग़लों की सेना से भिड़ंत हुई जिसमें मुग़लों की हार हुई।

टारडी खां अपनी जान बचाने के लिए पंजाब की ओर भागा क्योंकि वहां पहले से मुगलों की सेना मौजूद थी।
इस तरह हेमू ने दिल्ली पर कब्जा किया और हिन्दू राज की स्थापना की।

यहीं पर उन्हें महाराजा विक्रमादित्य की पदवी से नवाजा गया। उनके नाम के सिक्के बनवाए गए।


हेमू को जानकारी मिली की मुगल उन पर जवाबी हमले की योजना बना रहे हैं तो उन्हें अपनी तोपें पानीपत की ओर रवाना की।

वहीं, बैरम खां ने भी कुली शैबानी के नेतृत्व में 10 हजार लोगों को पानीपत की तरफ भेजा। ये आम लोग नहीं थे। ये उज्बेक थे जिनकी गिनती ताकतवर लड़ाकू में की जाती थी।


अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा कि जंग के दौरान हेमू ने कवच नहीं पहन रखा था और न ही उन्हें घुड़सवारी आती थी। यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी रही। मुगलों ने उनकी सेना को पछाड़ना शुरू कर दिया, लेकिन हेमू ने हिम्मत नहीं हारी।

एक समय ऐसा भी आया जब वो हाथी पर बेहोश होकर गिर पड़े। कुली शैबानी ने उसका फायदा उठाया और हेमू को जंजीरों से बांध दिया।


मौके पर आसपास खड़े लोगों ने बैरम खां को हेमू को मारने के लिए उकसाया और बैरम ख़ां ने अपनी तलवार से हेमू का सिर धड़ से अलग कर दिया। इतिहासकारों का कहना है कि अगर वो कुछ और साल जिंदा रहते तो भारत में मुगलों की जगह हिन्दू राज की नींव रखी जाती।

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Tags: Hemu VikramadityaHemu Vikramaditya historyhistoryINDIAN HISTORY

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