हम आपको आज जिस ट्रेन के बारे में बताने जा रहे हैं ये ट्रेन डीजल या फिर बिजली से नहीं चलेगी। जी हां ये ट्रेन हाइड्रोजन गैस से चलेगी। सबसे पहले आपको बताते हैं कि हाइड्रोजन ट्रेन क्या होती है?
दरअसल हाइड्रोजन ट्रेन हाइड्रोजन ईंधन से चलती है। इसके तहत ईंधन का इस्तेमाल हाइड्रोजन इंटरनल कंबंसन इंजन या फिर हाइड्रोन फ्यूल सेल में ऑक्सीजन के रिएक्शन से चलाई जाती है।
सभी हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाले रेल वाहन, हाइड्रेल कहे जाते हैं। हाइड्रोजन ईंधन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे जीरो प्रदूषण होगा।
आपको बता दें अगले साल से ये ट्रेन भारत में चलने वाली है।
आपको बता दें जर्मनी में दुनिया की पहली हाइड्रोजन ट्रेन चल रही है जिसे फ्रांस की एक कम्पनी ने बनाया है। अब भारत सरकार भी हाइड्रोजन गैस से चलने वाली ट्रेन को भारत में चलाएगी।
जर्मनी में चलने वाली हाइड्रोजन ट्रेन का निर्माण एल्सटॉम एस ए कंपनी ने किया है। डीजल से चलने वाली ट्रेनों की जगह अब ये ट्रेनें लेंगी। ये ट्रेन एक बार में 1000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है और इसकी अधिकतम गति 140 किलोमीटर प्रति घंटे होगी।
इस ट्रेन में एक बार ईंधन भरने के बाद 1000 किलोमीटर की दूरी तय की जा सकेगी। और इसमें ईंधन 20 मिनट से भी कम समय में भरा जा सकेगा। ये ट्रेनें सिर्फ भाप और वाष्पित पानी का उत्सर्जन करती हैं।
यानी जब ये चलेगी तो भाप या फिर कह सकते हैं कि पानी की बूंदे निकलेगी। जिससे प्रदूषण बिल्कुल नहीं होगा। अब भारत में इस ट्रेन को स्वदेशी तकनीकी से बनाया जाएगा।
आपको बता दें रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस ट्रेन को साल 2023 के अंत तक चलाने का एलान किया है। साल 2023 में मई जून तक इस ट्रेन का डिजाइन तैयार हो जाएगा और इसके बाद अगले 6 महीने में ये ट्रेन पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगी।
अब तक आपने बिजली और डीजल से चलने वाली ट्रेनें देखी होंगी या फिर उसमें ट्रैवल किया होगा। डीजल और बिजली से चलने वाली ट्रेनों से सबसे ज्यादा नुकसान पर्यावरण को हो रहा है क्योंकि डीजल ट्रेन से जो धुआं निकलता है उससे प्रदूषण ही फैलता है।
जबकि बिजली बनाने में भी प्रदूषण फैलता है। आपको बता दें इस वक्त भारत में 13555 ऐसी ट्रेनें हैं जो डीजल से चलती हैं। जो कि कुल ट्रेनों का 37% है। तो वहीं इनको चलाने में हर साल 237 करोड़ लीटर डीजल की खपत होती है यानी हर रोज करीब 65 लाख लीटर डीजल की खपत सिर्फ ट्रेन चलाने में होती है।
जिससे प्रदूषण तो फैलता ही है इसके अलावा डीजल को दूसरे देशों से मंगाया जाता है तो इसमें भी कमी आ सकती है और भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कुछ हद तक बढ़ेगा।
आपको बता दें इस ट्रेन में 20 मिनट तक ईंधन भरने से ये 18 घण्टे की दूरी तय कर सकती है।
तो वहीं हाइड्रोजन गैस की एनर्जी दूसरे ईंधन के मुकाबले ज्यादा होती है। एक किलो हाइड्रोजन गैस 4.5 लीटर डीजल के बराबर है। इस ट्रेन के रखरखाव यानी सर्विसिंग का खर्चा भी दूसरी ट्रेनों के मुकाबले कम है। इस ट्रेन से शोर भी बहुत कम होता है।
अब इसके अलावा आपको बताते हैं कि इसको बनाने में खर्च कितना आएगा। आपको बता दें जर्मनी में 27 हाइड्रोजन ट्रेन का खर्च करीब 4891 करोड़ पड़ा है यानी एक ट्रेन को बनाने में करीब 182 करोड़ का खर्च आया है।
जबकि एक्सपर्ट्स की मानें तो भारत में हाइड्रोजन गैस से चलने वाली एक ट्रेन को बनाने में करीब 50 से 70 करोड़ का खर्च आएगा।
इसके अलावा यहां पर एक सवाल ये उठता है कि सरकार ने तो बुलेट ट्रेन चलाने का दावा किया था लेकिन आज तक बुलेट ट्रेन का भारत में कोई नामोनिशान नहीं है। ऐसे में क्या ये ट्रेन चलाई भी जाएगी या फिर सिर्फ बयानबाजी ही होगी?