आज हम आपको अपने देश के राष्ट्रपतियों के बारे में जानकारी देंगे। कुछ ऐसी बातें जो आपको जान लेनी चाहिए। जो शायद आपको पता ना हो…. तो चलिए जानना शुरू करते हैं।
1. डॉ राजेन्द्र प्रसाद ( प्रथम राष्ट्रपति )

भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई।
वैसे तो राजेंद्र प्रसाद का विवादों से कोई नाता नहीं नहीं था लेकिन जवाहर लाल नेहरू से कई मुद्दों पर उनका राजनीतिक मतभेद था। ऐसा भी कहा जाता है कि नेहरू सी राजगोपालाचारी को भारत का पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे लेकिन सरदार पटेल और कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं ने जब हस्तक्षेप किया तब नेहरू अपने फैसले से पीछे हटे ।
ऐसा कई बार हुआ जब नेहरू से राजेंद्र प्रसाद का विवाद सार्वजनिक रूप से देखने को मिला । भारतीय संविधान को तैयार किया जा रहा था और इस समय भीमराव अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पेश किया था। इस बिल का नेहरू ने समर्थन किया लेकिन बतौर संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने इसका विरोध किया । राजेंद्र प्रसाद देश में कॉमन सिविल कोड लाना चाहते थे।
2. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन; भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।
डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए विख्यात थे, फिर भी अंग्रेजी सरकार ने उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया क्योंकि वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था।
उनके छात्र और उनके सहयोगी उन्हें बेहद पसंद करते थे इसका प्रमाण इस बात से लग जाता है कि जब वो मैसूर युनिवर्सटी को छोड़कर कलकत्ता में प्रोफेसर पद को सम्भालने के लिए रवाना हुए तो उनके साथ रेलवे स्टेशन पर एक फूलों से भरी गाड़ी चल रही थी।
राधाकृष्णन चालाक शख्स थे। वह फिलास्फर भी थे। उन दिनों रूस में दार्शनिकों को काफी सम्मान दिया जाता था। लिहाजा उन्होंने मास्को में खुद को अलग और खास दिखाने के लिए अपनी इस छवि को भुनाने की कोशिश की।
मास्को के राजनयिक सर्किल में उनके बारे में प्रोपेगैंडा फैलाया जाने लगा कि वह रात में केवल दो घंटे सोते हैं। रातभर दर्शन की किताबें लिखने में बिजी रहते हैं।दिन में राजनयिक की भूमिका निभाते हैं। वह रहस्यपूर्ण शख्सियत बन गए ।
3. ज़ाकिर हुसैन

जाकिर हुसैन भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे, उनका कर्यकालिन समय 13 मई 1967 से अपनी मृत्यु 3 मई 1969 तक रहा है। हुसैन देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति और साथ ही राष्ट्रपति होते हुए मरने वाले पहले राष्ट्रपति थे। साथ ही भारत के सबसे कम कर्यकालिन समय वाले राष्ट्रपति भी थे।
जब जाकिर हुसैन के अंग्रेज़ी कॉलेज बहिष्कार के फैसले के बारे में अंग्रेज प्रिंसिपल को मालूम चला तो अंग्रेज प्रिंसिपल ने उन्हें उप जिलाधीश बनाने का ऑफर तक दिया, उसे भी जाकिर हुसैन ने ठुकरा दिया और कहा कि उनके लिए मातृभूमि अहम है।
1922 में वे उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी गए। जर्मनी में रहते हुए तार से उनको सूचना मिली कि जामिया को आर्थिक संकट के कारण बंद करने का इरादा है। फिर वह 3 साल बाद डॉक्टरेट की उपाधि लेकर भारत लौटे तब तक जामिया की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी , वह बर्बाद हो रहा था ।
4. वी वी गिरि _ वराहगिरि वेंकट गिरि

राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर वह कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए गए थे। साल 1969 में वह देश के चौथे राष्ट्रपति बने थे।
वी.वी. गिरि ने श्रम मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। क्योंकि कांग्रेस सरकार ने बैंक कर्मचारियों की वेतन की मांग को ठुकरा दिया था।
राष्ट्रपति के रूप में, गिरि ने उत्तर प्रदेश में चरण सिंह मंत्रालय को बर्खास्त करने के प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के फैसले को निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लिया और उन्हें 1971 में समय से पहले चुनाव कराने की सलाह दी।
वह भारत के ऐसे राष्ट्रपति रहे जो पद पर रहते सुप्रीम कोर्ट के कठघरे में पहुंचे।
5. मुहम्मद हिदायतुल्लाह

भारत के पहले मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश थे। ये मध्यप्रदेश के प्रथम न्यायधीश भी रहे तथा उन्होंने दो अवसरों पर भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी कार्यभार संभाला था। इसके साथ ही वो एक पूरे कार्यकाल के लिए भारत के छठे उपराष्ट्रपति भी रहे।
1971 में इन्होंने बेलग्रेड में विश्व के जजों की असेम्बली में शिरकत की। रवीन्द्रनाथ टैगोर और पण्डित नेहरू के बाद इन्हें ही नाइट ऑफ मार्क ट्वेन की उपाधि 1972 में अमेरिका की ‘इंटरनेशनल मार्क ट्वेन सोसाइटी’ ने प्रदान की।
6. फखरुद्दीन अली अहमद

अब बात करते हैं ऐसे राष्ट्रपति की जिनका कार्यकाल तो महज दो साल 171 दिन का रहा लेकिन एक दस्तखत ने देश को आपातकाल की खाई में धकेल दिया। ये कहानी है देश के दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की, जो 1974 से 1977 तक देश के पांचवें महामहिम रहे । जाकिर हुसैन के बाद वे दूसरे ऐसे राष्ट्रपति थे, जिनका पद पर रहते हुए निधन हुआ था ।
आपातकाल के काले अध्याय में इनका नाम जरूर आता है।
7. B.D. Jatti

बासप्पा दानप्पा जत्ती (B. D. Jatti) की। जो मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक और कार्यवाहक राष्ट्रपति से लेकर उपराष्ट्रपति की कुर्सी संभाल चुके हैं। ये गौरव देश में अबतक सिर्फ दो राजनेताओं को हासिल हुआ है जो सीएम लेकर राष्ट्रपति का सफर तय किया हो ।
देश के पांचवें राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद का निधन हो जाने के कारण बासप्पा दानप्पा जत्ती को 11 फरवरी 1977 को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया। वे देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के पद पर 11 फरवरी 1977 से 25 जुलाई 1977 तक रहे। इस दौरान इन्होंने अपना दायित्व संवैधानिक गरिमा के साथ पूर्ण किया।
8. नीलम संजीव रेड्डी

नीलम संजीव रेड्डी 1969 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा, लेकिन इंदिरा गांधी की वजह से हार गए। इंदिरा ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया था। हालांकि, जब 11 फरवरी 1977 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की अचानक मौत हो गई तो फिर नीलम संजीव रेड्डी को निर्विरोध राष्ट्रपति चुना गया। उन्हें जनता पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया था।
उन्हें देश के ऐसे राष्ट्रपति के तौर पर भी याद किया जाता है जो इस विशाल परिसर वाले आलीशान भवन के केवल एक कमरे में रहते थे. वो ये भी चाहते थे कि राष्ट्रपति भवन के बाकी कमरे खाली कर दिए जाएं. बाद में उन्हें काफी समझाया बुझाया गया, तो राष्ट्रपति भवन में रहने आए, लेकिन यहां उनका जीवन काफी सादगी वाला था।
9. ज्ञानी जैल सिंह

साल 1982-87 तक भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह थे। देश के सातवें राष्ट्रपति। जो इस पद पर पहुंचने से पहले विधायक, मंत्री, सांसद, मुख्य मंत्री और केंद्रीय मंत्री भी रहे।
उनके ऊपर आरोप ये भी लगता है कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर बिना किसी से विचार विमर्श किए ही जैल सिंह ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी। लेकिन गांधी परिवार से इनकी कड़वाहट भी मशहूर हैं।
ज्ञानी जैल सिंह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी दोनों के कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति थे। ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल भारतीय इतिहास में कई बड़ी ऐतिहासिक घटनाओं का भी साक्षी रहा है।
10. आर. वेंकटरमण

आर. वेंकटरमण भारतीय गणराज्य के आठवें राष्ट्रपति थे और वर्ष 1987 से 1992 तक कार्यभार संभाला। रामास्वामी वेंकटरमण ने राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने से पहले चार साल तक भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर कार्य किया था।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के लिए, उन्हें ताम्र पत्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अगस्त 1984 में उन्हें भारत का उप राष्ट्रपति चुना गया और 25 जुलाई 1987 को वे भारत के आठवे राष्ट्रपति चुने गए. अपने 5 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने 4 प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। शंकर दयाल शर्मा
11. शंकर दयाल शर्मा

वे लंबे समय तक कांग्रेस के नेता रहे पर कभी किसी विवाद में नहीं आए। उन्हें सत्तापक्ष विपक्ष सभी से सम्मान मिला।
जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने का उन्हें मौका दिया तो उसे अस्वीकार कर दिया बाद में अपने ही फैसले पर अफसोस करना पड़ा। राष्ट्रपति होते हुए अपने घर नहीं जा सके और घर की गली तक पहुंचने के बाद लौटना पड़ा। उन्हें अपनी ही बेटी के हत्यारों की दया याचिका को सुनना पड़ा जिसे उन्होंने ख़ारिज कर दिया।
12. के आर नारायणन

केआर नारायणन केरल से लगातार तीन बार सांसद रहे, राजीव गांधी की सरकार में कैबिनेट मंत्री फिर उपराष्ट्रति बने। इसके बाद वे 1997 में देश के पहले दलित राष्ट्रपति बने।
1997 में केंद्र जब इंद्रकुमार गुजराल जब प्रधानमंत्री थे। उस समय केंद्र संयुक्त मोर्चा सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार को बर्खास्त करने का प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजा गया था। इसके बार ऐसा ही मौका एक साल बाद 1998 में आया।
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। उनकी सरकार ने बिहार में राबड़ी देवी की सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजी थी। इस बार भी अपने विवेक के आधार पर निर्णय करते हुए केआर नारायणन ने केंद्र की सिफारिश को मानने से इनकार कर दिया था।
इन दोनों पर केआर नारायण के फैसले को लेकर बहुत सराहना हुई थी।
13. A P J अब्दुल कलाम
एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय वैज्ञानिक और जाने-माने इंजीनियर भी थे। उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है।
Dr Kalam अपने कार्यों की सफलता और अपनी उपलब्धियों के कारण राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को उम्मीदवार बनाया। 25 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। Dr APJ Abdul Kalam एक ऐसे राष्ट्रपति है जिनको राष्ट्रपति बनने से पहले भारत रत्न का पुरस्कार मिल चुका है।

14. प्रतिभा देवी सिंह पाटिल

टेबल टेनिस की शानदार खिलाड़ी रह चुकीं प्रतिभा पाटिल जब देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुईं, तो वह हर महिला के लिए प्रेरणा बन गईं।
इसके अलावा वे राजस्थान के पूर्व राज्यपाल, राज्यसभा के सदस्य एवं महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर भी अपनी सेवाएं दे चुकी हैं।
कार्यकाल के दौरान सबसे ज्यादा फांसी की सजा माफ की गई है। पाटील ने मृत्युदंड की 19 सजाओं को उम्रकैद में तब्दील किया गया है।
15. प्रणब मुखर्जी

2012 से 2017 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। इससे पहले वे छह दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे और उन्हें कांग्रेस का संकटमोचक माना जाता था।
वे 1969 में पहली बार कांग्रेस टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए थे और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। प्रधानमंत्री पद को छोड़कर वे कई शीर्ष पदों पर रहे। राजनीतिक समीक्षकों का कहना रहा है कि वे मनमोहन सिंह के स्थान पर अच्छे प्रधानमंत्री सिद्ध होते।
भारत के प्रधानमंत्री ना बनने को लेकर भी प्रणब मुखर्जी ने एक बार खुलकर बात की थी। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री न बनने का एक मुख्य कारण उनकी कमजोर हिंदी भाषा थी।
16. रामनाथ कोविंद

देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति रहे रामनाथ कोविंद
राम नाथ कोविंद ने 25 जुलाई 2017 को जब भारत के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी
राष्ट्रपति ने गुजरात के आतंक विरोधी एक बिल को 16 साल बाद मंजूरी दी। इससे पहले की कांग्रेस सरकार के समय यह बिल रोक दिया गया था।
आर्टिकल 370 को निरस्त करने पर उन्होंने अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई थी । CAA का समर्थन, NRC और Corona उनके कार्यकाल में हमेशा याद किया जाएगा।