भारत के दो ऐसे पड़ोसी हैं, जिनके कारण उसकी सीमा पर हमेशा तनाव बना रहता है।
पाकिस्तान के साथ जम्मू-कश्मीर को लेकर विवाद है तो चीन के साथ न सिर्फ लद्दाख, बल्कि अरुणाचल प्रदेश में भी सीमा विवाद है।
चीन भारत के हजारों किलोमीटर हिस्से पर अपना दावा करता है।
पूर्वी लद्दाख में तो चीन के साथ मई 2020 से ही तनाव बना हुआ है, लेकिन अब अरुणाचल से सटी सीमा पर भी ड्रैगन अपनी ओर पक्का निर्माण कर रहा है।
अरुणाचल प्रदेश में चीन की सेना बुनियादी ढांचे को विकसित कर रही है। वहां उसने सड़क, रेल और एअर कनेक्टिविटी बढ़ा ली है।
साथ ही 5G मोबाइल नेटवर्क भी शुरू कर लिया है। अरुणाचल के 90 हजार वर्ग किमी पर चीन अपना दावा करता है।
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, भारतीय सेना के पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलीता ने बताया कि चीन अरुणाचल से सटी सीमा पर अपनी ओर तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है।
चीन ने सीमा के उस पार रेल, सड़क और एअर कनेक्टिविटी बढ़ा ली है।
गांव भी बसाए जा रहे हैं, जिनका दोहरा इस्तेमाल किया जा सके और तो और वहां 5G मोबाइल नेटवर्क भी तैयार कर लिया गया है।
अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन के साथ लंबे समय से सीमा विवाद है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश की करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन अपना दावा करता है।
जबकि, भारत की ओर से साफ किया जा चुका है कि अरुणाचल भारत का अटूट हिस्सा है और रहेगा। उसके बावजूद चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आता।
क्या है सीमा विवाद?
चीन के साथ सीमा विवाद को समझने से पहले थोड़ा भूगोल समझना जरूरी है।
चीन के साथ भारत की 3,488 किमी लंबी सीमा लगती है। ये सीमा तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी हुई है।
ईस्टर्न सेक्टर में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है, जो 1346 किमी लंबी है।
मिडिल सेक्टर में हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा है, जिसकी लंबाई 545 किमी है।
वहीं, वेस्टर्न सेक्टर में लद्दाख आता है, जिसके साथ चीन की 1,597 किमी लंबी सीमा लगती है।
चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी के हिस्से पर अपना दावा करता है।
जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है।
इसके अलावा 2 मार्च 1963 को हुए एक समझौते में पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी।
1956-57 में चीन ने शिन्जियांग से लेकर तिब्बत तक एक हाईवे बनाया था। इस हाईवे की सड़क उसने अक्साई चिन से गुजार दी।
उस समय अक्साई चिन भारत के पास ही था। सड़क गुजारने पर तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चीनी राष्ट्रपति झोऊ इन लाई को पत्र लिखा।
झोऊ ने जवाब देते हुए सीमा विवाद का मुद्दा उठाया और दावा किया कि उसके 13 हजार वर्ग किमी इलाके पर भारत का कब्जा है।
झोऊ ने ये भी कहा कि उनका देश 1914 में तय हुई मैकमोहन लाइन को नहीं मानता।
क्या है ये मैकमोहन लाइन?
1914 में शिमला में एक सम्मेलन हुआ। इसमें तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत।
इस सम्मेलन में सीमा से जुड़े कुछ अहम फैसले हुए। उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे।
उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची। इसे ही मैकमोहन लाइन कहा गया।
इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था। मैकमोहन रेखा पूर्वी-हिमालयी क्षेत्र और भारतीय क्षेत्रों के चीन के व्यवसाय वाले क्षेत्रों के बीच की सीमा को मार्क करती है। यह क्षेत्र ऊँचाई का पहाड़ी स्थान है।
यह लाइन ब्रिटिश भारत सरकार में विदेश विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन द्वारा निर्धारित की गई थी और इसे किसी के नाम पर मैकमोहन लाइन कहा जाता है। इस लाइन की चौड़ाई 890 किलोमीटर है।
आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को माना, लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया।
चीन ने दावा किया कि अरुणाचल दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और चूंकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ।

मैकमोहन रेखा भारत और चीन के बीच एक स्पष्ट सीमा रेखा को परिभाषित करती है। यह लाइन ब्रिटिश भारत सरकार में विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन द्वारा निर्धारित की गई थी।
इस लाइन की चौड़ाई 890 किलोमीटर है। लेकिन इस लाइन को नहीं चुना जाता है। यह भारत और चीन के बीच कलह की वजह है।
संचार-संधि-1914
मैकमोहन रेखा 1914 की संवाद संधि का परिणाम था जो भारत और तिब्बत के बीच हुई थी। लेकिन इस चीन समझौते और रेखा को नहीं बनाया गया है।
संचारी संधि क्या है?
1914 में स्पष्ट सीमांकन के लिए भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों के बीच संचार संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
चीन इस समझौते संधि में मौजूद नहीं था क्योंकि इस समय तक तिब्बत एक स्वतंत्र क्षेत्र था, इसलिए उस समय चीनी प्रतिनिधि की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस संधि का.
इस प्रकार की संधि के अनुसार मैकमोहन रेखा भारत और चीन के बीच स्पष्ट सीमा रेखा है।
ब्रिटिश शासकों ने भारत की ओर से अरुणाचल प्रदेश के तवांग और तिब्बत के दक्षिणी हिस्से को भारत का हिस्सा मानते हैं।
और जिसे तिब्बती लोग भी मानते हैं। इसके कारण अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र भारत का हिस्सा बन गया।
चाइना मैकमोहन लाइन को क्यों नहीं बदलते?
चीन के अनुसार तिब्बत हमेशा से उसके क्षेत्र का हिस्सा रहा है, इसलिए तिब्बत के प्रतिनिधि चीन की सहमति के बिना किसी समझौते को स्वीकार करने के लिए अधिकृत नहीं हैं।
1950 में चीन ने तिब्बत पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया। अब चाइना मैकमोहन लाइन को न तो हटाता है और न ही हटाता है।
चीन का यह भी तर्क है कि चीन के अनुकूल समझौते में शामिल नहीं था, इसलिए फैशनेबल समझौता उस पर संबद्ध नहीं है।
1950 में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार जताया।
मैकमोहन लाइन पर भारत का रुख:-
भारत का मानना है कि 1914 में जब मैकमोहन रेखा की स्थापना हुई थी, तब तिब्बत एक कमजोर लेकिन स्वतंत्र देश था, इसलिए उसे किसी भी देश के साथ सीमा समझौते पर बातचीत करने का पूरा अधिकार है।
भारत के अनुसार, जब मैकमोहन रेखा खींची गई थी, तब तिब्बत पर चीन का शासन नहीं था, इसलिए मैकमोहन रेखा भारत और चीन के बीच स्पष्ट और कानूनी सीमा रेखा है।
1950 में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद भी तवांग क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग बना रहा।
मैकमोहन रेखा पर वर्तमान स्थिति:-
भारत मैकमोहन रेखा को मान्यता देता है और इसे भारत और चीन के बीच ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी)’ मानता है, जबकि चीन मैकमोहन रेखा को मान्यता नहीं देता है।
चीन का कहना है कि विवादित क्षेत्र का क्षेत्रफल 2,000 किलोमीटर है जबकि भारत का दावा है कि यह 4,000 किलोमीटर है।
भारत और चीन के बीच यह भूमि विवाद तवांग (अरुणाचल प्रदेश) में है, जो चीन तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है।
जबकि अनुकूलक एकॉर्डर के अनुसार यह भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश का हिस्सा है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चीन लगभग हर उस संधि को अस्वीकार करता है जिसे उसने साम्यवादी क्रांति से सबसे पहले चुना था। पंचशील समझौते के बारे में भी यही सच है।