जब कभी आप को बुखार आता हैं, और यदि आपको कमजोरी महसूस होती हैं।
तो ऐसे में आप डॉक्टर के पास दवा लेने तो जरूर जाते होंगे तो ऐसे में डॉक्टर आपको दवा के साथ साथ एक ORS पाउडर का पैकेट देता हैं।
जो कि आप को पानी में घोलकर पीना होता हैं। जब भी आपको कमजोरी महसूस होती हैं।
तब आपको डॉक्टर ORS recommend करते होंगे।
ओआरएस पाउडर को पानी में मिलाकर उचित मात्रा में घोल बनाकर पीना होता हैं।
जिससे आपके शरीर में पानी की कमी को पूरा करता हैं। इसमें इलेक्ट्रोल्स, ग्लूकोस और जल की मात्रा पर्याप्त होती हैं।
वैसे तो उल्टी दस्त में ORS डॉक्टरों के द्वारा कई बार recommend किया जाता हैं।
दस्त के साथ-साथ उल्टी और अधिक पसीना आने की स्थिति में भी शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स की मात्रा को संतुलित बनाए रखने के लिए बच्चों को ओआरएस का घोल दिया जाता हैं।
ORS पीने से शरीर मे फुर्ती का अनुभव होता हैं। Ors अधिकतर छोटे बच्चों को दस्त होने पर डॉक्टर की बताए गए तरीके से ors देना होता हैं। जिससे दस्त रुक जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी बच्चें में दस्त के इलाज के लिए ors को जरूरी माना हैं।
इससे शरीर में आंतों को ज्यादा पानी अवशोषित करने की क्षमता मिलती हैं। तथा इस में उपस्थित ग्लूकोस तथा इलेक्ट्रोल्स हमारे शरीर में पानी की कमी को पूरा करते हैं।
ORS पीने से डिहाईड्रेशन की कमी दूर होती हैं। तथा इसे पीने से थकान भी महसूस नहीं होती और आपका शरीर में फुर्ती बनी रहती हैं।
तथा इससे डायरिया भी नहीं होता हैं। Ors को जीवन रक्षक घोल भी कहा जाता हैं।
क्योंकि काफी समय पहले जब डायरिया से लोग मर रहे थे, तब ors एक जीवन रक्षक के रूप में काम आया इसलिए इसे जीवन रक्षक घोल कहा जाता हैं।
Ors की खोज

The Times of India के एक लेख के अनुसार, डॉ. दिलीप ने शिशु रोग चिकित्सा की ट्रेनिंग ली थी,
लेकिन उन्होंने पब्लिक हेल्थ में एंट्री की। 1996 में कोलकाता स्थित जॉन होपकिन्स यूनिवर्सिटी इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग में ORT (Oral Rehydral Therapy) पर शोध कर रहे थे।
डैविड आर नलिन, रिचर्ड ए कैश और डॉ. दिलीप ने मिलकर ORS को विकसित किया।
ये कितना कामगर हैं, इसकी जांच सिर्फ़ कंट्रोल्ड कंडिशन्स में ही हुई थी।
आज पिछड़े से पिछड़े गांव तक ये जीवन रक्षक पहुंच चुका हैं।
दुनिया को जिस डॉक्टर ने ये जीवन रक्षक घोल दिया वो हैं, डॉक्टर दिलीप महालनोबिस।
दुनिया की चकाचौंध से दूर शांति में डॉक्टर दिलीप ने अपना जीवन बिताया और शांति से ही इस दुनिया से चले गए।
16 अक्टूबर को कोलकाता के एक अस्पताल में 87 वर्ष की आयु डॉ. महालनोबिस की मौत हो गई।
उनके फेफड़ों में इन्फ़ेक्शन हो गया था और उन्हें बढ़ती उम्र की बीमारियां भी थी।
युद्ध के दौरान बचाई कई जानें
1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाखों लोग बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल के विभिन्न ज़िलों में पहुंचे।
बोन्गांव रिफ़्यूजी कैम्प में हैज़ा फैल (Cholera Epidemic) गया था।
कैम्प में इंट्रावेन्स फ़्लूड्स भी खत्म हो गई थी। डॉ. दिलीप ने इस कैम्प के मरीज़ों को ORS देना शुरू किया था।
लेकिन तब तक ORS को मंज़ूरी नहीं दी गई थी।
डॉ. दिलीप के निर्णय की वजह से रिफ़्यूजी कैम्प का मृत्यु दर घटकर 3% हो गया था।
ORS के आलोचकों को इस डेटा ने चुप करा दिया था। ORS न सिर्फ़ कामगर साबित हुआ बल्कि इसकी कीमत भी न के बराबर ही थीं।
बाद में ORS को 20वीं सदी की सबसे बड़ी खोज कहा गया।
डॉक्टर. महालनाबिस
दिलीप महालनाबिस (12 नवंबर 1934 – 16 अक्टूबर 2022) एक भारतीय बाल रोग विशेषज्ञ थे।
जिन्हें डायरिया संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा के उपयोग में अग्रणी होने के लिए जाना जाता हैं।
Mahlanabis ने 1966 में कलकत्ता , भारत में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग के लिए एक शोध के रूप में ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी पर शोध करना शुरू किया था ।
स्वतंत्रता के लिए बांग्लादेशी युद्ध के दौरान , उन्होंने जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर के प्रयास का नेतृत्व किया जिसने हैजा होने पर मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा की नाटकीय जीवन रक्षक प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया।
1971 में पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश ) के शरणार्थियों के बीच शुरू हुआ, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में शरण मांगी थी।
सरल, सस्ती मौखिक पुनर्जलीकरण समाधान (ओआरएस) को स्वीकृति मिली, और बाद में इसे 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रगति में से एक के रूप में सराहा गया।
सम्मान और पुरस्कार
1994 में, महालनाबिस को रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज का एक विदेशी सदस्य चुना गया था।
2002 में डॉ. महालनाबिस, डॉ. नथानिएल पियर्स, डॉ. डेविड नलिन और डॉ. नॉर्बर्ट हिर्शहॉर्न को मौखिक पुनर्जलीकरण चिकित्सा की खोज और कार्य में उनके योगदान के लिए बाल चिकित्सा अनुसंधान में पहला पोलिन पुरस्कार प्रदान किया गया था।
2006 में डॉ. महालनाबिस, डॉ. रिचर्ड ए. कैश और डॉ. डेविड नलिन को ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी के विकास और अनुप्रयोग में उनकी भूमिका के लिए भी प्रिंस महिदोल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
करियर
उन्होंने 1975-79 तक WHO की हैजा नियंत्रण इकाई में काम किया, अफगानिस्तान, मिस्र और यमन में सेवा भी की।
उन्होंने 1980 के दशक के दौरान WHO के लिए जीवाणु रोगों पर सलाहकार के रूप में भी काम किया।
1980 के दशक के मध्य और 1990 के दशक की शुरुआत में, वह WHO के डायरिया रोग नियंत्रण कार्यक्रम में एक चिकित्सा अधिकारी थे।
1990 में उन्हें इंटरनेशनल सेंटर फॉर डायरियाल डिजीज रिसर्च (ICDDR) बांग्लादेश में क्लिनिकल रिसर्च ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया गया था।
बाद में वहां क्लिनिकल रिसर्च के निदेशक बने। 2004 में, वह और डॉ. नथानिएल पियर्स ओआरएस के एक उन्नत संस्करण पर काम कर रहे थे।
जो सभी प्रकार के दस्त से निर्जलीकरण को रोकने में अधिक प्रभावी होगा और कम मल उत्पादन जैसे अतिरिक्त लाभ प्रदान करेगा।
जीवन और शिक्षा
दिलीप महालनाबिस का जन्म 12 नवंबर 1934 को ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत के किशोरगंज जिले में हुआ था।
उन्होंने इंटर्न के रूप में काम करने के बाद 1958 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में स्नातक किया।
यूके में एनएचएस की स्थापना ने उन्हें यूके में चिकित्सा करने का अवसर प्रदान किया गया। उन्होंने लंदन और एडिनबर्ग से डिग्री प्राप्त की।