भारत में एक राष्ट्रपति की बहुत खास भूमिका होती। जी हाँ, भारत में राष्ट्रपति यानि की President देश के सर्वोच्च नागरिक होते हैं। और जैसा की हम सभी जानते हैं इस वक्त देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हैं। जिनका कार्यकाल अब खत्म होने जा रहा है। बिल्कुल सही सुना आपने, भारत में राष्ट्रपति चुनाव का बिगुल बज चुका है। राष्ट्रपति का चुनाव आम जनता के वोटों से तय नहीं होता संविधान में इसका अलग से नियम बनाया गया है। हमारा संविधान पूरे विश्व के तमाम संविधानों से मिला जुलाकर बनाया गया है।
हमारे यहां प्रधानमंत्री सर्वोच्च पॉवर रखता है जोकि हमने ब्रिटेन के पार्लियामेंट्री सिस्टम से लिया है वहीं अमेरिका में राष्ट्रपति सर्वेसर्वा होता है। ऐसे ही तमाम देशों का अपना-अपना संविधान है। बाकी चुनावों की तरह भारत में राष्ट्रपति चुनाव इलेक्शन कमीशन की देखरेख में ही होता है। चुनाव आयोग ने देश के नए राष्ट्रपति के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है और अगले राष्ट्रपति का चुनाव इससे पहले ही होना है।
आखिरकार भारत में राष्ट्रपति चुनाव कैसे होता है ? भारत में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता के वोटों से तय नहीं होता। बल्कि जनता जिनको चुनती है उनके वोटों से राष्ट्रपति चुना जाता है। इसीलिए इसको अप्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं। यहां आपको फिर से क्लियर कर दें, सिर्फ वो ही राष्ट्रपति चुनाव में मतदान कर सकता है, जिसका चुनाव जनता करती है। यानी की सांसद और विधायक। राष्ट्रपति चुनाव में संसद में नामित सदस्य और विधान परिषदों के सदस्य वोट नहीं डाल सकते हैं, क्योंकि ये जनता द्वारा सीधे नहीं चुने जाते हैं।
प्रेजिडेंट का चुनाव एक निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज करता है। संविधान के आर्टिकल 54 में इसका उल्लेख है। यानी जनता अपने प्रेजिडेंट का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए लोग करते हैं। यह है अप्रत्यक्ष निर्वाचन।
इस चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के इलेक्टेड मेंबर और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद वोट डालते हैं। प्रेजिडेंट की ओर से संसद में नॉमिनेटेड मेंबर वोट नहीं डाल सकते। राज्यों की विधान परिषदों के सदस्यों को भी वोटिंग का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे जनता द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते।
इस चुनाव में एक खास तरीके से वोटिंग होती है, जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह तमाम कैंडिडेट्स में से अपनी प्रायॉरिटी तय कर देता है। यानी वह बैलट पेपर पर बता देता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन। यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।
राष्ट्रपति चुनाव का विजेता वह व्यक्ति नहीं होता जिसे सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, बल्कि वह व्यक्ति होता है जिसे एक निश्चित कोटे से अधिक मत प्राप्त होते हैं. प्रत्येक उम्मीदवार के लिए डाले गए वोटों को जोड़कर, योग को 2 से विभाजित करके और भागफल में ‘1’ जोड़कर कोटा तय किया जाता है.
जो उम्मीदवार तय कोटा से अधिक वोट प्राप्त करता है वह विजेता होता है. यदि किसी को कोटे से अधिक वोट नहीं मिलते हैं, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को रेस से हटा दिया जाता है और हटाए गए उम्मीदवारों के मतपत्र उन मतपत्रों में दूसरी वरीयता पसंद के आधार पर शेष उम्मीदवारों के बीच वितरित किए जाते हैं. प्रत्येक उम्मीदवार के लिए कुल मतों की गिनती की प्रक्रिया फिर दोहराई जाती है ताकि यह देखा जा सके कि कोई तय कोटा से ऊपर मत पा सका है या नहीं.
यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक किसी का वोट कोटा से अधिक तक नहीं पहुंच जाता है, या जब तक लगातार निष्कासन के बाद सिर्फ एक उम्मीदवार नहीं बच जाता है. तब उस व्यक्ति को भारत के राष्ट्रपति के विजेता के रूप में घोषित किया जाता है.