भारत और चीन में एक बार फिर से तनाव बढ़ गया है। दरअसल अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई। भारतीय सेना ने बताया कि 9 दिसंबर को तवांग सेक्टर में यांगत्से के पास भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुई थी।
इस झड़प में दोनों ओर के कुछ सैनिकों को चोटें आई थी। आपको बता दें तवांग से पहले लद्दाख में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों में हिंसक झड़प हुई थी। उस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे। चीन ने 6 महीने बाद इस झड़प में चार जवानों के मारे जाने की बात कबूल की थी।
हालांकि, एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि इस झड़प में चीन के कम से कम 38 सैनिक मारे गए थे। इससे भी पहले 2017 में डोकलाम में 73 दिन तक भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने थीं।
हालांकि, उस दौरान कोई हिंसा या झड़प नहीं हुई थी।
आपको बता दें भारत और पाकिस्तान की सीमा को लाइन ऑफ कंट्रोल कहा जाता है जबकि, भारत और चीन की सीमा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहा जाता है।
पिछले कुछ सालों में LAC पर तनाव ज्यादा बढ़ा
LAC पर तनाव पिछले कुछ सालों में कुछ ज्यादा ही गहरा गया है। विवाद पहले भी था, लेकिन तब इस तरह की झड़प देखने को कम मिलता था। उसकी एक वजह ये भी है कि भारत से सटी सीमाओं पर चीन इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है।
सैनिकों की तैनाती बढ़ा रहा है। जबकि भारत और चीन के बीच कुछ ऐसे समझौते हुए है जिन्होंने सीमा पर गोली चलाने पर बैन लगाकर रखा है।
जी हां ये सबसे बड़ी वजह है कि भारत और चीन के बीच एक समझैता हुआ था जिसकी वजह से दोनों देशों के सैनिक गोली नहीं चला सकते। और यही सबसे बड़ा कारण है कि जब भी झड़प होती है तो गोली चलने की खबर सामने नहीं आती।
दरअसल LAC पर शांति बनाए रखने के लिए तीन दशक में भारत और चीन के बीच 5 अहम समझौते हुए हैं। पहला समझौता 1993 में हुआ था। उसके बाद 1996 में दूसरा समझौता हुआ था। फिर 2005, 2012 और 2013 में ऐसे समझौते हुए थे।
दरअसल 1962 की जंग के बाद भारत और चीन के रिश्तों में खटास आ गई थी। 1988 में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया था। इस दौरे ने रिश्तों को बेहतर करने में अहम रोल अदा किया था।

1993 में सेना बल के इस्तेमाल न करने पर हुआ समझौता
तो वहीं 1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने चीन का दौरा किया था। उस समय ली पेंग चीन के प्रधानमंत्री थे। उसी दौरे में ये समझौता हुआ था। इस समझौते में तय हुआ था कि कोई भी देश एक-दूसरे के खिलाफ बल या सेना का इस्तेमाल नहीं करेगा।

साथ ही ये भी तय हुआ कि अगर किसी देश का जवान गलती से LAC पार कर जाता है तो दूसरा देश उनको बताएगा और जवान फौरन अपनी ओर लौट आएगा। इसी समझौते में ये भी कहा गया कि अगर तनाव बढ़ता है तो दोनों देश LAC पर जाकर हालत का जायजा लेंगे और बातचीत से हल निकालेंगे।
1996 में हुए समझौते के अनुसार कोई भी देश धमकी नही देगा
1993 के 3 साल बाद 1996 में एक और समझौता हुआ था। तब चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन भारत आए थे। भारत में उस समय एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे। इस समझौते पर 29 नवंबर 1996 को दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए थे।
समझौते में तय हुआ था कि दोनों ही देश एक-दूसरे के खिलाफ न तो किसी तरह की ताकत का इस्तेमाल करेंगे या इस्तेमाल करने की धमकी देंगे। समझौते का पहला अनुच्छेद कहता है कि दोनों में से कोई भी देश एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य क्षमता का इस्तेमाल नहीं करेंगे और न ही कोई भी सेना हमला करेगी।
साथ ही ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिससे सीमा से सटे इलाकों में शांति और स्थिरता को खतरा हो। इसी समझौते का अनुच्छेद 6 सबसे अहम है। ये अनुच्छेद ही है जो सीमा पर गोली चलने से रोकता है।
इस समझौते का अनुच्छेद 6 गोली चलाने से रोकता है
अनुच्छेद 6 के मुताबिक LAC के दो किलोमीटर के दायरे में कोई भी देश गोलीबारी नहीं करेगा। ब्लास्ट ऑपरेशन या बंदूकों और विस्फोटकों से हमला नहीं करेगा। 1993 और 1996 में हुए समझौतों ने ही 2005, 2012 और 2013 के समझौतों की नींव रखी थी।
इन समझौतों में तय हुआ कि एलएसी के जिन इलाकों को लेकर सहमति नहीं बनी है, वहां पेट्रोलिंग नहीं होगी और सीमा पर दोनों देशों की जो स्थिति है, वही रहेगी। वैसे तो इन समझौतों में लिखी एक-एक बात को मानने के लिए दोनों देश ही बाध्य हैं।
चीन हमेशा समझौतों का करता है उल्लंघन
लेकिन चीन इन समझौतों का उल्लंघन करता रहा है। जून 2020 में गलवान घाटी में जब झड़प हुई थी, तब गोली चलने की बात भी सामने आई थी। ये 45 साल में पहला मौका था जब LAC पर गोली चली थी।
हालांकि, भारत हमेशा इन समझौतों का पालन करता है। गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद जब सवाल उठे थे कि जवानों को बिना हथियारों के क्यों भेज दिया गया था?
तब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि ‘सीमा पर तैनात सभी जवान हथियार लेकर चलते हैं और गलवान में तैनात जवानों के पास भी हथियार थे। चीन हमेशा ही इन समझौतों का पालन नहीं करता है जिसकी वजह से LAC पर तनाव बढ़ जाता है।