वही मलिक अम्बर जिसने अकबर और जहांगीर की नींदे उड़ा दी, छत्रपति शिवाजी महाराज जिसकी तुलना सूर्य से करते थे।
मलिक अम्बर का जन्म द. अफ्रीका के मिडिल ईस्ट इथोपिया में 1548 को हुआ था, मलिक अम्बर का बचपन का नाम ‘चापू’ था। चापू एक हब्शी थे।हब्शी भारत में उसे कहा जाता है जो कुछ भी खा लेता है। इस हब्शी का अर्थ कुछ और है दरअसल द. अफ्रीका के एक स्थान पर गुलामों की खरीद ब्रिक्री की जाती है।
अरबी व्यापारी इस जगह को अल हवश और लोगों को अबीसीनियन या हब्शी कहते थे। बाद में भारत में हब्शी को काले रंग से जोड़कर देखा जाने लगा।
आइए चापू यानी मलिक अम्बर की बात करते हैं, उस समय इथोपिया की माहौल सही नहीं था, यहाँ के शासक नॉन एब्राहमिक लोगों को अपने कब्जे में करने लगा और गुलाम के रूप में बेचने लगा। चापू को बगदाद ले जाया गया और उन्हे बेचा गया, उस समय चापू की उम्र 12 साल थी। चापू को कासिम नाम के खरीददार ने खरीदा।
कासिम ने चापू का धर्म बदलवाकर इस्लाम कबूल करवाया और नाम रखा अम्बर।
कासिम ने ही अम्बर को शिक्षा दी, युद्ध के कौशल दिखाए। दस साल बाद अम्बर को फिर बेचा गया, उसे दक्कन लाया गया। दक्कन में उस समय राजाए आपस में लड़ रहे थे और मुगल भी दक्कन में अपनी सत्ता स्थापित करना चाह रहा था।
उस समय दक्कन में 4 सल्लतनत थे – बीजापुर,अहमदनगर, गोलकोंडा और मुगल सल्ल्तनत
जब अम्बर को लगा वो भी सम्राट बन सकता है
अम्बर को अहमदनगर के शासक के चंगेज खान के यहाँ बेचा गया था। चंगेज खान ने उस समय एक हजार गुलाब खरीदे थे, ये गुलाम ईमानदार,वफादार और साहसी होते थे।कहा जाता है कि जब एक हब्शी समुद्री जहाज पर होते तो लुटरे जहाज पर हमला नहीं करते थे। और सबसे खास बात चंगेज खान भी एक द.अफ्ररीकी मूल के निवासी थे और वे भी एक समय गुलाम थे।
अम्बर को चंगेज खान के सेना में शामिल किया गया।
चंगेज खान से मिलने के बाद उन्हे भी यह लगा कि वो भी अपनी मेहनत के दम पर सम्राट बन सकते हैं।
अम्बर ने अपने काम से चंगेज खान को इम्प्रेस कर दिया, चंगेज खान ने उसे अपना खास आदमी बना लिया और लीडरशिप और राजनिति के बारे में सिखाया। अम्बर ने 5 साल तक चंगेज खान के सेना में काम किया। 1576 में अहमतनगर में सत्ता को लेकर लड़ाई चली और चंगेज खान को मरवा दिया गया। चंगेज खान के मरने के बाद अम्बर को आजाद किया गया।
जब मुगल शासक से पहली बार भिड़े
आजादी मिलने के बाद बीजापुर आ गया और वहाँ के सेना में भर्ती हो गया।
बीजापुर के राजा के मौत के बाद वहाँ की सत्ता उनकी पत्नी ‘चांद बीबी’ ने संभाली।
उसी समय अम्बर ने गुलामों की शानदार सेना तैयार कर ली जो महारानी चांद बीबी के लिए मर मिटने को तैयार रहते थे। अम्बर के ईमानदारी और बफादारी से प्रसन्न होकर चांद बीबी के बेटे ने उन्हे मलिक की उपाधि दी।
तभी इनका नाम पड़ा मलिक अम्बर।
बीजापुर और अहमदनगर के बीच जंग हुआ और उसमें अहमदनगर का शासक मारा गया और वहाँ की सत्ता की डोर चांद बिबी के हाथ में आने वाली थी लेकिन वहाँ के प्रधानमंत्री ने मुगल से हाथ मिला लिया और हमला करने को कहा। मुगल शासक अकबर ने चांद बीबी के खिलाफ जंग छेड़ दिया। दोनों की सेनाओं लडा़ई लड़ गई, अकबर की सेना बुरी तरीके से जंग हार गया। इस जंग में मलिक अम्बर ने चांद बीबी की खूब मदद की थी।
जब एक गुलाम बना सम्राट
इस जंग की हार के बाद मुगल चुप बैठा रहा लेकिन चार साल बाद फिर मौका मिला जब 1599 में चांद बीबी की मृत्यू हो गई। मुगल ने अपनी सत्ता स्थापित कर लिया।
लेकिन अब वक्त आ चुकी थी इतिहास बनने का, एक गुलाब का सम्राट बनने का।
अम्बर ने देशभक्ति के नाम पर हिंदु, मराठा, तुर्क आदि की विशाल सेना तैयार किया। और अम्बर पहले शासक बने जिन्होने गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई। गुरिल्ला युद्ध यानी घुड़सवारों की छोटी छोटी टुकड़ी जो मुगलों के विशाल सेना पर चारों बगल से हमला कर देते और समय देखकर भाख जाते थे,बाद में यह रणनीति ने छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी अपनाई।
मलिक अम्बर के सेना मुगलों पर भारी पड़े और वापस लौटने को मजबूर हो गए। अब गुलाम अम्बर अब सम्राट बन चुका था लेकिन उसे पता था यहाँ की जनता एक गुलाम को राजा के रुप में नहीं देखना चाहता है। इसलिए उन्होने बीजापुर के शाही परिवार के सुल्तान मुर्तजा से अपनी बेटी की शादी करा दी और उसे नाम का राजा बना दिया लेकिन सारी शक्ति अभी भी अम्बर के हाथ में ही थी।
1610 तक मुगलों ने मलिक अम्बर से पंगा नहीं लिया, लेकिन अकबर की मौत के बाद जहागीर शासक बना और दक्कन में अपनी सत्ता स्थापित करने का सपना देखने लगा।
जहागीर ने अपने दरबार में एक पेटिंग लगा रखी जिसमें वह मलिक अम्बर की सर काट रहा है लेकिन उसकी ख्वाशिश कभी पूरी नहीं हुई।
सबकुछ ठीक चल रहा था तभी उनके दामाद मुर्तजा ने दूसरी शादी की और उनके इस पत्नी ने उन्हे मलिक अम्बर के खिलाफ उकसाने लगे।
मलिक अम्बर काफी चालाक थे उन्होने इन दोनों को मरवा दिया और नाबालिक राजकुमार के साथ मिलकर सत्ता संभाली। उन्होने अपनी नई राजधानी बनाई जिसका नाम रखा खिरकी, जिसे बाद में औरंगाबाद किया गया।
अम्बर को मिली पहली हार
महान योद्धा मलिक अम्बर को पहली बार 1616 में मुगलों के हाथों हार झेलनी पड़ी क्योकिं बीजापुर के शाह आदिल ने चुपके से मुगल से हाथ मिला लिया था।
मलिक ने बीजापुर में कुछ बागियों को तैयार किया जिससे मुगल और बीजापुर की सेनाओं मिलकर उनके खिलाफ जंग छेड़ दी।
अपनी मौत से दो साल पहले 1624 में उन्होने फिर मुगलों को उनकी औकात दिखाने की ठानी।
भतवाड़ी नामक गांव से उन्होने फिर से गुरिल्ला युद्ध करने की योजना बनाई। उन्होने झील की पानी रास्ते पर ला दिया जब मुगलों की सेना वहाँ आई तो दलदल में फँस गई। ओर उनके जाबांज सैनाओं ने चारों दिशाओं से हमला कर दिया। इस हमले में कई सारे मुगल सैनिक मारे गए, कई सेनापति बंदी बनाए गए, कई सारे सैंनिक उनकी सेना में आ गए।
महान मलिक अम्बर के मौत पर जहागीर के आत्मकथा में लिखा है – “युद्ध कौशल, न्याय, शासन करने में अंबर जैसा कोई नहीं।इतिहास में उसके जैसा कोई गुलाब नहीं था।”
कहा जाता है मलिक अम्बर के शासन काल में हिंदु- मुस्लिम दोंनों शांति पूर्ण रहते थे। उन्होने जनता के हित में काफी काम किया। वे जब तक जिंदा रहे मुगलों को सपना को पूरा नहीं होने दिया। आसपास के राजा भी अम्बर को धन भेजते थे ताकि वे मुगलों को हरा पाए।
तो ये थी एक गुलाब की महान राजा बनने की कहानी, आपको कैसी लगी हमें अवश्य बताए