फीफा अंडर-17 विश्व कप में भारत आज से अपने अभियान की शुरुआत अमेरिका के खिलाफ करने वाला है। झारखंड की छह बेटियों को नेशनल टीम में जगह मिली है। यहां तक कि टीम की कप्तान भी झारखंड की ही बेटी अष्टम उरांव है।गुमला जिला से 60 किमी दूर बिशुनपुर प्रखंड के बनारी गोर्राटोली की रहने वाली अष्टम उरांव भारतीय महिला टीम की कप्तान हैं। इसलिए गांव वाले चाहते हैं कि अष्टम उरांव को इस इंटरनेशनल मुकाबले में खेलते हुए टीवी पर देखें।
गुमला जिले की 2 लड़कियों का टीम इंडिया हुआ चयन
आपको बता दें कि गुमला जिले के दो फुटबॉलरों का चयन फीफा वर्ल्ड कप के लिए हुआ है। जिसमें चैनपुर प्रखंड की सुधा अंकिता तिर्की व बिशुनपुर प्रखंड की अष्टम उरांव है।गोर्राटोली गांव के लोग इस बात से खुश हैं कि गांव की मिट्टी में पली बढ़ी अष्टम देश के लिए खेलेगी।

अष्टम उरांव के पिता हीरालाल उरांव ने कहा कि आज मुझे अपनी बेटी पर बहुत गर्व है जो पूरे दुनिया में अपनी प्रतिभा के दम पर नाम रोशन कर रही है. उन्होंने बताया कि गरीबी के कारण किसी प्रकार उन्होंने अपने बच्चों की परवरिश की। शिक्षा एवं संस्कार देने का भरपूर प्रयास किया। जिसका नतीजा आज सामने है।
बिशुनपुर जैसे पिछड़े इलाके से निकलकर आज बनी भारत की कप्तान
बिशुनपुर जैसे जगहों में खेल की कोई सुविधा नहीं होने के बावजूद अष्टम आज भारतीय महिला टीम की विश्व कप अगुवाई करेगी। उनके पिता ने आगे कहा कि इससे मुझे गर्व महसूस हो रहा है। अष्टम उरांव की मां तारा देवी ने बताया कि अष्टम शुरू से ही एक जुझारू बच्ची है। वह जिस काम को ठान लेती है, उसे पूरे मन के साथ करती है। यही वजह है कि आज वह इस मुकाम तक पहुंच पायी है।अष्टम उरांव के परिवार में माता-पिता, तीन बहनें और एक भाई हैं। परिवार के पास थोड़ी सी खेती है। माता-पिता दूसरे के खेतों में मजदूरी करते हैं।

आपको बता दें अष्टम को बचपन से फुटबॉल खेलना पसंद था। माता-पिता ने आर्थिक परेशानियों के बावजूद उसे इस उम्मीद के साथ हजारीबाग के सेंट कोलंबस कॉलेजिएट स्कूल में भेजा कि वहां पढ़ाई के साथ-साथ फुटबॉल की प्रैक्टिस का भी मौका मिलेगा।
अष्टम के नाम पर बन रही गांव में सड़क
अष्टम के नाम पर जिला प्रशासन उनके गांव को जाने के लिए एक सड़क का निर्माण करवा रहा है इस सड़क का नाम अष्टम के नाम पर ही रखा गया है लेकिन इससे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा सामने आया है।

दरअसल जिस सड़क का निर्माण जिला प्रशासन करवा रहा है उसी सड़क पर अष्टम के माता-पिता मजदूरी कर रहे हैं। दिनभर की मजदूरी के बदले दोनों को 250 रुपए मिलते हैं । यह सड़क गुमला जिले के बनारीगोरी टोली गांव में अष्टम के घर तक बन रही है।आपको बता दें अष्टम उरांव का गांव दूरस्थ इलाका में है। गांव के लोग गरीबी में जी रहे हैं। ग्रामीण लोग खेतीबारी करते हैं और वह भी पूरी तरह बारिश पर निर्भर करता है।गांव वाले रोज कमाते हैं तो खाते हैं।
गांव में नहीं थी एक भी टीवी
अष्टम का परिवार भी गरीबी में जी रहा है। माता पिता मजदूरी करते हैं ऐसे में टीवी खरीदने के लिए इन लोगों के पास पैसा नहीं है इस कारण परिवार के लोग बेटी को खेलते हुए नहीं देख पाएंगे इस बात से निराश थे लेकिन जिला प्रशासन ने इसकी खबर मिलने के बाद उनके यहां टीवी तो लगवा दिया।

लेकिन ये सोचिए अष्टम जहां से निकली वहां पर एक टीवी भी थी पूरे गांव में ऐसे में ये सवाल उठता है आखिर सरकारें काम क्या कर रही हैं सरकारें भले ही ये दावा करें कि वो देश और विकास कर रहे हैं लेकिन ऐसी कोई न कोई सच्चाई सामने आ ही जाती है जो सरकार के दावों की पोल खोलती है। ये सिर्फ एक अष्टम की बात नहीं है दरअसल हमारे देश में ऐसी कई और अष्टम होंगी जो अपने सपने को हकीकत में बदलना चाहती होंगी लेकिन उनके पास वो सुविधाएं नहीं होने से उनका सपना तो पूरा नहीं हो पाता साथ ही साथ ये देश का भी बहुत बड़ा नुकसान होता है।